Short Introduction of Golden Temple In Hindi
Facts and History About Golden Temple In Hindi :- पंजाब के सबसे मशहूर जाने माने नगर अमृतसर में स्थित गोल्डन टेंपल स्वर्ण मंदिर सिक्खो का सबसे पवित्र धार्मिक स्थान है। स्वर्ण मंदिर को हरमिंदर साहिब और दरबार साहिब के नाम से भी लोग जानते है। यहां हर रोज दुनिया भर से हजारो लोग इस पवित्र स्थान के दर्शन करने आते है। केवल सिख ही नहीं बल्कि सभी धर्मो के लोग यहा आ जा सकते है। मजे की बात ये है की गोल्डन टेम्पल में रोज कई हजारों लोगो को फ्री खाना खिलाया जाता है
इस मंदिर का प्रमुख आकर्षण इस पर चढ़ी हुई सोने की परत है जो इसकी खूबसूरती को कही गुना बढ़ा देती है और पर्यटको को अपनी और आकर्षित करती है और लुभाती हैं। गोल्डन टेंपल से जुड़ी इतिहास (Golden Temple History In Hindi) और रोचक जानकारिया नीचे दी गई है।
अमृतसर स्थित स्वर्ण मंदिर का इतिहास – Amritsar Golden Temple History In Hindi
Who Built Golden Tempe In Hindi – स्वर्ण मंदिर किसने बनवाया ?
इस पवित्र और खूबसूरत गुरद्वारे का इतिहास लगभग 400 साल पुराना है। कुछ स्रोतों के अनुसार दरबार साहिब को बनाने का विचार सीखो के चौथे गुरु “राम दास“ जी ने राखी थी।
1574 ईस्वी में यहां एक बहुत ही पवित्र सरोवर का निर्माण हुआ था जिसे आज हम अमृतसर के नाम से जानते है। उसी पवन सरोवर के नाम पर ही इसके चारो तरफ बसे नगर का नाम अमृतसर रखा गया।
गुरु राम दास के पुत्र एवं सीखो के पांचवे गुरु अर्जुन देव जी ने बाद में अमृत सरोवर जिसको आज अमृतसर कहते है के बीच एक खूबसूरत गुरुद्वारे का निर्माण कराया था |
अर्जुन देव जी सभी धर्मों का सम्मान करते थे और इनका मानना था की सभी धर्म एक हैं | उनका कहना था की धर्म के नाम पर लोगो को बाटना बहुत बड़ा पाप है और उनकी इसी सोच की अद्भुत मिसाल है हरमिंदर साहिब।
उनका कहना था की हर धर्म के लोग इस गुरुद्वारे में आ सकते है और ईश्वर की आराधना कर सकते है। इसलिए गोल्डन टेम्पल की नीव लाहौर के जाने माने एक मुस्लिम सूफी संत मिया मीरसे से सन्न 1588 में रखवाई गई थी और
1604 ईस्वी में जाकर इसका पूरी तरह से निर्माण कार्य समाप्त हुआ था और स्वर्ण मंदिर बनकर तैयार था।
अमृतसर के स्वर्ण मंदिर पर सोने की परत किसने और क्यों चढ़वाई ?
हलाकी मुगलो और अफगानो के शासन काल में स्वर्ण मंदिर को कई बार नष्ट किया जा चुका है । लेकिन लोगो की आस्था और विशवास ने इसे हर बार पुननिर्माण कराया है। 17 वि शताब्दी में जब अफगान हमलावारों ने पंजाब पर आक्रमण कर इस मंदिर को नष्ट कर दिया था तो फिर सरदार जस्सा सिंह अहलुवालिया ने इसे दुबारा से बनवा दिया था।
19वी शताब्दी के महाराज रणजीत सिंह ने इस मंदिर की बाहरी आक्रमणों से रक्षा के लिए इस पर सोने की परत चढ़वाई। कहा जाता है की इस मंदिर पर सोने की परत चढ़ाने के लिए करीब 750 किलो सोने का उपयोग किया गया था और तभी इसका नाम स्वर्ण मंदिर हो गया।
Golden Temple Architectural Design in Hindi
इस गुरुद्वारे की बनावट बहुत ही उम्दा और खूबसूरत है। सफ़ेद संगमरमर से बने इस गुरूद्वारे की दीवारों और छतो पर अद्भुत नक्काशी और आकृतियां बनाई गई है। इन कलाकृत्यों के माध्यम से ही गुरूद्वारे के बनने से लेकर इसके नष्ट होने और पुनः निर्माण होने तक की सम्पूर्ण घटना को दर्शाया गया है।
इस पर की गई शानदार कारीगरी यहां आने वाले श्रद्धालुओं का मन मोह लेती है।
यह गुरुद्वारा एक पवित्र सरवोर के बिल्कुल बीचो बीच बसा हुआ है और हरमंदिर साहिब तक पहुचने के लिए सरोवर पर बने रास्ते से होकर जाना होता है। इस पवित्र सरवोर को अमृतसर, अमृत सरोवर, अमृत की झील जैसे दूसरे और नामो के नाम से भी जाना जाता है।
गुरूद्वारे के चारो दिशाओं में बेहद ही सुन्दर दरवाजे बने है जिस पर सुन्दर नक्काशी की गई है। गुरूद्वारे के चार दरवाजे का होना अर्थ है की इस पवित्र धार्मिक स्थल पर हार जाती, वर्ण, लिंग और धर्म को आने की इज्जत देते है। क्योंकि उस समय भी समाज चार भागो में विभाजित था।
मंदिरो व धार्मिक स्थालो में जाने की सिर्फ कुछ विशेष वर्ग को अनुमति होती थी। इसी भेदभाव को खत्म करने के लिए ही गुरु द्वारे में चार दरवाजे बनाया गए थे ताकी इस पवित्र स्थल पर हर धर्म-जाती का व्यक्ति आये और ईश्वर की पूजा कर सके।
श्री हरमंदिर साहिब, 67 फीट पर बना है। सरोवर (टैंक) के केंद्र में वर्गाकार मंच। मंदिर ही 40.5 फीट है। वर्ग।
इसके पूर्व, पश्चिम, उत्तर और दक्षिण में एक-एक द्वार है।
दर्शनी देवरी (एक मेहराब) सेतु के किनारे छोर पर स्थित है।
मेहराब के चौखट की ऊंचाई लगभग 10 फीट और सांस में 8 फीट 6 इंच है। दरवाजे के शीशे कलात्मक शैली से सजाए गए हैं। यह सेतु या पुल की ओर खुलता है जो श्री हरमंदिर साहिब के मुख्य भवन की ओर जाता है।
इसकी लंबाई 202 फीट और चौड़ाई 21 फीट है। यह पुल 13 फीट चौड़े ‘प्रदक्षिणा’ (परिक्रमा पथ) से जुड़ा हुआ है। यह मुख्य मंदिर के चारों ओर चलता है और यह ‘हर की पौरे’ (भगवान के कदम) की ओर जाता है। ‘हर की पौरे’ की पहली मंजिल पर लगातार गुरु ग्रंथ साहिब का पाठ होता है।
Information About The Holy Amritsar Lake – पवित्र और पावन अमृसर सरोवर
गुरूद्वारे के चारो तरफ बने इस सरोवर के पानी को बहुत पावन और पवित्र मानते है। इस जलाशय का निर्माण गुरु राम देश जी ने खुद अपने हाथों से किया था।
सब यह मानते है की इस सरोवर में स्न्नान करने से सभी दुःख दर्द दूर हो जाते है। इसलिए यह परम्परा है की हरमंदिर साहिब में जाने से पहले आपको इस पवित्र सरोवर में स्नान करना होगा उसके बाद ही आप अंदर प्रवेश कर सकते है।
अमृतसर सरोवर से जुड़ी एक रोचक कहानी
इस सरोवर से जुड़े कुछ चमत्कारी किस्से भी प्रचलित है इन किस्सों में से एक कहानी है यहां स्थित दुखभंजनी बेरी नाम का तीर्थ स्थान।
इस तीर्थ स्थान पर घटित हुई उस रोचक किस्से को गुरुद्वारे की दीवारों पर भी दर्शाया गया है। जिसके अनुसार एक राजा की चार पुत्रियां थी एक दिन राजा अपनी चारो पुत्रियों से पूछता है “आप लोग किसके दिए हुए भोजन खाती हो” इस पर उसकी तीनो पुत्रियां अपने पिता के पक्ष मे उत्तर देती है लेकिन चौथी पुत्री उत्तर देती हुई कहती है – “पिताजी हम सभी भगवान् का दिया हुआ खाते है उसी ने हमको ये सब दिया है।” इस उत्तर को सुन राजा क्रोधित हो जाता है और अपनी चौथी पुत्री का विवहा एक कोढ़ व्यक्ति से करा देता है और बोलता है अगर ये सब भगवान ने दिया है तो अब उसी से अपनी और अपने पति के लिए रोजी रोटी मांगना।
राजा की बेटी होते हुए भी वह लड़की अपने पति के साथ भोजन के लिए दर दर भटकती रहती थी। परन्तु उस लड़की को ईश्वर पर पूरा अटूट विश्वास था की यह सब जल्दी ही ठीक हो जायेगा। एक दिन लड़की अपनी पति को तालाब किनारे बैठा कर भोजन की तलाश में निकल जाती है। कुछ समय बाद तालाब के पास एक कोवा आता है और तालाब में डुबकी लगाकर जैसे ही बहार आता है वह एक खूबसूरत हंस बन जाता है।
यह सब घटना वह कोढ़ व्यक्ति बैठ देखता है और सोचता है शायद में भी अगर इस तालाब में डुबकी लगाऊंगा तो मेरा कोढ़ समाप्त हो जायेगा और तभी वह व्यक्ति ने तालाब में में उतरकर डुबकी लगकर बहार जैसे ही निकलता है उसे कोढ़ समाप्त हो जाते है और एक सुन्दर युवक बन जाता है । तभी इस तालाब के जल को अमृत के समान मना जाने लगा।
यह वही तालाब है जिसमे आज स्वर्ण मंदिर स्थापित है। पहले यह तालाब आकार में छोटा था और इसके चारो तरफ बेरी के पेड़ हुआ करते थे परन्तु वर्तमान में देखे तो ये काफी बड़ा हो चुका है। अभी भी इसके एक किनारे बेरी का पेड़ मौजूद है और आज भी इस स्थान को बेहद पवित्र मन जाता है।
स्वर्ण मंदिर के लंगर से जुडी जानकारियां – About Langar of Golden Temple in Hindi
हरमंदिर साहिब में रोज लाखो लोगो को निशुल्का भोजन करवाया जाता है जिसे लंगर कहा जाता है। इस लंगर की प्रथा करीब 15 वी शादी के शुरुआत से ही चलती आ रही है। सर्व प्रथम लंगर की शुरुवात सिक्खों के प्रथम गुरु नानक देव जी ने करी थी। उन्होंने इस प्रथा की शुरुवात करना मुख्य कारण समाज से जात-पात ऊँच-नीच, लिंग-भेद जैसे कुरीतियों को खत्म करना था। क्यूंकि भगवान के घर में सभी लोगो को आने की अनुमति होनी चाहिए।
यहां पर 24 घंटे खाने पिने की पूरी व्यवस्था रहती है। भूखे लोग कभी भी यहां आकर भोजन ले सकता है। यहां पर लंगर की व्यवस्था यहीं के सेवादारों द्वारा की जाती है। इतना ही नहीं यहां पर व्यक्ति के तीन दिन रहने की पूरी व्यवस्था भी मौजूद है। रुकने के लिए यह कई कमरे और हाल भी बने हुए है।
स्वर्ण मंदिर जाने का सबसे अच्छा समय ? – Best Time For Going Golden Temple in Hindi ?
अगर आपको स्वर्ण मंदिर के दर्शन करने है तो उसके लिए आपको लम्बी लाइन में खड़े होकर अपनी बारी का इंतजार करना जरुरी है। दर्शन करने का समय सुबह 3 से रात 10 बजे तक होता है । शनिवार और रविवार को यहा पर अच्छी भीड़ देखी जा सकती है। इन दो दिन यहां और दिनों के मुकाबले दुगने श्रद्धालु होते है और अपनी बारी आने में काफी ज्यादा समय लग सकता है।
मित्रों अगर आप लम्बी कतरो में खड़े होने से बचना चाहते है तो सुबह 4 बजे का समय या रात का 8 बजे का समय सबसे अच्छा रहता है। हलाकि इस समय भीड़ कम होती है और आप जल्दी दर्शन कर सकते है।
आप तीज, त्यौहार व वीकेंड्स को छोड़कर आये तो ज्यादा अच्छा रेहगा। क्यूंकि इन दिनों यहां पर आपको काफी भीड़-भाड़ मिलेगी जिसके चलते गुरूद्वारे के अंदर लोगो को ज्यादा देर तक रुकने भी नहीं दिया जाता है। इसलिए त्यौहार को छोड़कर ही आप यहा आये ताकि आप गुरुद्वारे में शांति पूर्वक कुछ देर बैठकर मन को शांति और सुख देने वाले गुरु की गुरुवाणी भी सुन सके।
Some Things To know Before going to the Golden Temple in Hindi -स्वर्ण मंदिर जाने से पहले जानने योग्य कुछ बातें
- गुरद्वारे में जाने से पहले जूते बाहर ही निकालने होते है, नंगे पाँव अंदर जाने की अनुमति है।
- गुरूद्वारे में आपको अपने सिर को स्कार्फ़ या रुमाल से ढकना अनिवार्य है। सिंपल भाषा में कहु तो सर का ढकना जरुरी है
- हरमंदिर साहिब में आप कट सिल्वस या घुटने से ऊपर कपडे पहनकर नहीं जा सकते है। छोटे कपड़ो में जाना मना है
- यहां पर मांसहारी भोजन, शराब, ध्रूमपान आदि निषेध है। प्योर शाकाहारी ही जा सकते है अंदर,
- मांसाहारी भी जा सकते है लेकिन मांसाहार यहाँ अल्लोव नहीं है
- गुरुवाणी सुनते समय सभी को जमीन पर बैठना आवश्यक होता है । ऐसा करना गुरुग्रंथ साहिब का सम्मान माना जाता है
golden temple kahan hai
गोल्डन टेम्पल इंडिया , पंजाब के अमृतसर शहर में अट्टा मंडी , कटरा अहलुवालिआ में स्थित हैं
स्वर्ण मंदिर से जुड़ी रोचक जानकारियां – Interesting Facts Know About Golden Temple In Hindi
- सिक्खों के प्रथम गुरु गुरुनानक देव जी ने इसी जगह पर ध्यान लगया था और गरीब, साधु-संतो को लगंर खिलाने की प्रथा चालू करी थी जो अभी तक चली आ रही है। और हमेसा चलती रहेगी |
- सोने की परत चढ़ने से लोग इसी को स्वर्ण मंदिर के नाम से पुकारने लगे थे और तभी से अब तक इसका प्रचलित नाम सवर्ण मंदिर ही है।
- इस मंदिर की सबसे खास बात यह है की इसमें चारो दिशाओं में प्रवेश द्वार बने हुए है। जो इसको सबसे अलग करती है।
- यहां विश्व का सबसे बड़ा रसोई घर है। जिसमे रोज लगभग 1 लाख श्रद्धालओं के लिए भोजन बनाया जाता है।
- स्वर्ण मंदिर के अंदर ही सिख धर्म की सबसे पवित्र ग्रन्थ गुरु ग्रन्थ साहिब स्थापित है। इसलिए भी स्वर्ण मंदिर को सीखो का सबसे बड़ा और पवित्र तीर्थ स्थल माना जाता है।
- सर्वप्रथम हरमंदिर साहिब ईंट और पत्थरों से ही बना हुआ था। परन्तु 19वी शताब्दी में नष्ट होने के बाद इसे दुबारा से सफ़ेद संगमरमर का इस्तमाल किया और साथ ही इसके गुम्बंद पर शुद्ध सोने की परत चढ़ाई गाइ थी।
- आपको जानकार हैरानी होगी की सात अजूबों में शामिल ताज महल से ज्यादा पर्यटक गोल्डन टेम्पल को देखने के लिए पर्यटक आते है।
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