10 lines short stories with moral in Hindi

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10 lines short stories with moral in Hindi: हर बच्चा 10 लाइन की Short Stories बहुत ही ज्यादा पसंद करता है. क्युकी ये छोटी और मजेदार कहानिया होती है।

हम बच्चो के लिए 10 से ज्यादा Short Stories with Moral in Hindi लेकर आए है. उम्मीद करते है बच्चे इन कहानियो से अच्छी शिक्षा हासिल करे। और 10 Lines Short Stories with Moral in Hindi में ऐसे बहुत सी शिखने वाली चीजे होती है, जिससे बच्चो के साथ साथ बड़े भी बहुत ही कुछ शिख सकते है.

बच्चे इन छोटी छोटी कहानियों Short Stories in Hindi से अपनी समझ का बहुत ही अच्छे से विकास कर सकते है और सही गलत की पहचान कर सकते है. यह एक अच्छा तरीका है की बच्चो को कहानियो से कुछ भी नया और अच्छा सिखाया जा सकता है।

प्रत्येक कहानी 10 lines short stories with moral in Hindi के अन्त में कहानी से मिलने वाली सीख की जानकारी भी दी गयी है, जिसे बच्चे पढ़कर ज्ञान अर्जित कर सकते हैं। हमें पूर्ण विश्वास है कि ये छोटी-छोटी कहानियाँ कम समय में बालमन को गुदगुदाने के साथ अभिभावकों का भी मनोरंजन करेगीं।

तो चलिए अब देर न करते हुए 10 Lines Short Stories with Moral in Hindi में पढ़ते है.

सच्ची मित्रता (10 lines short stories with moral in Hindi)

दो मित्र थे, रघुनाथ और श्रीधर। वे दोनों ठी संस्कृति के महान पण्डित थे। एक बार वे दोनों एक नाव में सवारी कर रहे थे। सवारी करते…करते श्रीधर ने रघुनाथ से कहा, ‘मित्र, समय नहीं कट रहा है। मैं तुम्हें अपने ग्रन्थ के कुछ अंश पढ़कर सुनाता हूँ।’ यह कहकर उसने अपने सामान में से न्यायदर्शन पर लिखा ग्रन्थ निकाला।

श्रीधर ग्रन्थ के अंश पढ़ने लगा। कुछ देर तक तो रघुनाथ सुनता रहा फिर उसका चेहरा मुरझाने लगा और वह अचानक रोने लगा। श्रीधर ने ग्रन्थ का पाठ रोकर उसके रोने का कारण पूछा।

गहरी साँस लेते हुए रघुनाथ ने कहा, ‘मित्र! मेरी तो सारी तपस्या निष्फल हो गयी।’ श्रीधर ने पूछा, ‘ऐसा क्यों कह रहे हो? रघुनाथ बोला, ‘मैंने भी न्यायदर्शन पर एक ग्रन्थ लिखा है। मुझे लगता था कि मेरा ग्रन्थ बेजोड़ है और मुझे उससे बहुत यश मिलेगा, लेकिन तुम्हारे ग्रन्थ के अंशों को सुनने के बाद मेरी आशाओं पर पानी फिर गया। तुम्हारा ग्रन्थ मेरे ग्रन्थ से भी उत्तम हैं।

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10 lines short stories with moral in Hindi

इसके सामने मेरे ग्रन्थ को कोई पूछेगा भी नहीं। भला सूर्य के सामने दीपक की क्या बिसात।’ यह कहकर वह फूट-फूट कर रोने लगा। श्रीधर मुस्कराते हुए बोला, ‘मुझे पता नहीं था कि तुमने भी इसी विषय पर ग्रन्थ लिखा है। लेकिन इसमें दु:खी होने वाली क्या बात है? विश्व में ऐसी कोई समस्या नहीं, जिसका हल न निकाला जा सकता हो।’ यह कहते हुए श्रीधर ने अपना ग्रन्थ फाड़ कर नदी में बहा दिया जोर सच्ची मित्रता का परिचय दिया।

तारीफ10 lines short stories with moral in Hindi

सज्जन नाम का एक व्यक्ति था। उसकी दयालुता और बुद्धिमानी के चर्चे दूर-दूर तक थे। एक बार उसकी तारीफ राजा चन्द्रभान के कानों में पड़ी। राजा ने प्रसन्न होकर उसे कई गांवों का अधिकारी बना दिया।

अधिकारी बनने के बाद एक दिन वह राजा से मिलने गया और अपनी तारीफों के पुल बाँधने लगा। उसने राजा से कहा, ‘मेरे जैसा कोई नहीं है। मैं महान हूँ। सच्चा न्यायाधीश हूँ। मेरे जैसा दयालु व्यक्ति आज तक कहीं नहीं देखा।’ उसकी बात सुनकर राजा को बहुत हैरानी हुई और निराशा भी। वह सोचने लगा कहीं मैंने गलत फैसला तो नहीं तो लिया।

राजा ने सज्जन से कहा, ‘तुम बहुत घमण्डी और बदमिजाज व्यक्ति हो। पद हाथ में आते ही सातवें आसमान पर जा बैठे। अपनी तारीफ खुद करने वाला कभी जनता के साथ न्याय नहीं कर सकता।’ सज्जन मुस्कराया और बोला, ‘महाराज! मैंने जो कुछ भी अभी कहा इसके लिए मुझे क्षमता करें। लेकिन मैं तो अपने कानों को पक्का कर रहा हूँ।

बहुत जल्दी मुझे ऐसे चापलूस मिलेंगे, जो दिन-रात इसी तरह मेरी प्रशंसा करते रहेंगें। यदि मैंने भूल से भी उनकी प्रशंसा पर भरोसा कर लिया, तो मैं पथ से भटक जाऊँगा ओर विलासिता में डूब जाऊँगा।

हो सकता है कि मैं निरंकुश भी हो जाऊँ। इसलिए मैंने अपनी प्रशंसा के शब्द खुद ही बार-बार बोलने शुरू कर दिये है। ताकि मेरे कान पक्के हो जायें। मेरे कान इन शब्दों को सुनने के आदी हो जायेंगे, तो चापलूसों की बातें का मुझ पर प्रभाव नही पड़ेगा और में जनता की सेवा ठीक से कर पाऊँगा।’

सज्जन की बात सुनते ही राजा को समझ में आ गया कि वह चापलूसों से घिरा हुआ है। बातों-बातों में सज्जन ने राजा को ज्ञान दे दिया था। राजा बहुत शर्मिन्दा हुआ और उसने अपने सभी चाटुकारों की छूट्टी करते हुए अपने विवेक से राजकाज करना शुरू कर दिया।

चाय के कप की सुन्दरता का रहस्य10 lines short stories with moral in Hindi

एक दिन मिट्टी के बरतन बनाने वाला रामसखा चाय का कप बना रहा था। उसने मिट्टी का लौंदा उठाया और उसे खूब पीटा-पटका। फिर उसे चाक पर रखकर जोर से घुमाया। मनचाहा रूप ढालकर उसे भट्टी में रख दिया। थोड़ी देर बाद उसे बाहर निकाला, नुकीले ब्रश से झाड़ा और रंग दिया। फिर कप को दोबारा भट्टी में रख दिया।

लेकिन इस बार भट्टी का तापमान पहले की तुलना में ज्यादा था। जैसे ही रामसखा ने केप को भट्टी से निकाला कप चिल्लाने लगा। उसने कहा, ‘बस, बहुत हो गया। अब मैं और कष्ट नहीं सहूँगा। पहले ही तुम मुझे बहुत परेशान कर चुके हो। तुम उस भट्टी में देखो, तब पता चलेगा कितनी घुटन होती है। तुमने मुझे बहुत कष्ट दिया हैं। मैं इसके लिए तुम्हें कभी माफ नहीं करूँगा।’

कप की बात सुनकर रामसखा ने उसे आईने के सामने रख दिया। जैसे ही कप ने खुद को आईने में देखा, तो उसे विश्वास ही नहीं हुआ कि वह इतना खूबसूरत बन चुका है। रामसखा ने कहा ‘मुझे तुन्हारे कष्ट का अंदाजा था, लेकिन यदि मैं तुम्हें मिट्टी का लौंदा ही बने रहने देता, तो आज तुम इतने सुन्दर नहीं लग सकते थे।

मुझे पता है कि तुम्हें भट्टी के भीतर कैसा लगा होगा। लेकिन मैंने तुम्हें वहाँ नहीं रखा होता, तो तुम चटख जाते। मैंने तुम पर दम घोंटने वाले बदबूदार रंग लगाये। यदि मैं ऐसा नहीं करता, तो तुममें कठोरता नहीं आती। अब तुम पूरी तरह तैयार हो गये तो।’ यह सुनकर कप समझ गया कि कठोर परीक्षा के बाद ही सुन्दर भविष्य हासिल होता है। कप अपने सारे कष्ट भूल गया और उसने अपनी खूबसूरती के लिए रामसखा को धन्यवाद दिया।

मोह किससे10 lines short stories with moral in Hindi

एक बार किसी धनी व्यक्ति ने स्वामी जी को कीमती दुशाला भेंट किया। स्वामी जी ऐसी वस्तुओं के शौकीन नहीं थे। लेकिन भक्त के आग्रह पर उन्होंने भेंट स्वीकार कर ली। उस दुशाले को कभी वे चटाई की तरह बिछाकर सोते, तो कभी ओढ़ लेते। दुशाले का ऐसा उपयोग उनके एक शिष्य से नहीं देखा गया। उसने स्वामी जो से कहा, ‘यह तो बहुत मूल्यवान दुशाला है। आप जिस तरह इसका उपयोग कर रहे हैं, उस तरह तो यह जल्दी खराब तो जायेगा।’

स्वामी जी ने मुस्कराकर जवाब दिया, ‘जब मैंने जीवन की समस्त मोह-माया को त्याग दिया है, तो भला इस कपड़े से कैसा मोह? यया अपना ध्यान भगवान से हटाकर इस दुशाले पर लगाना उचित होगा? यदि मैं ऐसा करता हुँ, तो यह कहाँ की बुद्धिमानी होगी? ऐसा कहकर उन्होंने दुशाले का एक कोना जला दिया और शिष्य से बोले, ‘अब ना तो यह दुशाला मूल्यवान रहा और ना ही सुन्दर।

अब तुम्हारे मन में भी इसके लिए मोह नहीं रहेगा और तुम अपना सारा ध्यान ईश्वर की साधना में लगा सकोगे।’ यह सुनकर शिष्य निरूत्तर हो गया। उसे समझ में आ गया कि वह जितनी जल्दी सांसारिक वस्तुओं से मोह त्यागेगा, उतनी जल्दी सूखी जीवन के निकट पहुँच पायेगा।

सौदा10 lines short stories with moral in Hindi

मनमौजी किसी दुकान पर सामान लेने के लिए चढे। गौर से एक-एक वस्तु को उलट-पुलट कर देखते रहे। फिर दुकानदार से पूछा कि आटा क्या भाव है? दुकानदार ने बताया “दस रुपय का एक किलो’। मनमौजी ने बड़े रौब से भड़कते हुए जवाब दिया कि वह भाव बताओ, जो बड़े लोगों के लिए है, यह तो तुम साधारण लोगों के भाव बता रहे हो।’

दुकानदार कुछ समझा नहीं। मनमौजी ने समझाया, ‘दस रुपये का एक किलो तो सभी को देते हो, मैं तो सौ रुपये का एक किलो लूँगा।’ दुकानदार की बाँछे खिल गयी। उसने सोचा कि आज अच्छा मुर्ख फँसा है। उसने मिठास भरी जुबान में कहा, ‘जी हाँ, खास लोगों के लिए सौ रुपये का एक किलो भाव है और आप तो बहुत बड़े आदमी हैं।’

10 lines short stories with moral in Hindi

दुकानदार ने फटाफट एक किलो आटा तौल दिया और मन ठी मन खुश हुआ कि आज एक किलो आटे के सौं रूपये मिल जायेंगे। जैसे ही आटा तुल कर सामने आया। मनमौजी ने एक रुपया निकाल कर दुकानदार की हथेली पर रख दिया। दुकानदार कभी एक रुपया देखता, तो कभी मनमौजी का चेहरा। उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था।

‘मेरा मुँह क्या देख रहे हो, सौ रुपये में सौ सिक्के तो साधारण लोगों के होते हैं, बड़े लोगों का तो एक रुपया ही सौ रुपये के बराबर होता है।’ मनमौजी ने केहा और चलते बना। हथेली पर पड़ा सिक्का दुकानदार को मुँह चिढ़ा रहा था। उसे समझ आ गयी थी कि हमेशा ही दूसरों को मुर्ख मान लेना भी मुर्खता की निशानी है।

तलवार की कीमत10 lines short stories with moral in Hindi

एक धनी सेठ था। उसको हमेशा यह चिन्ता रहती थी कि कहीं कोई उसका धन न लूट ले। साथ ही वह कंजूस भी था। कहीं आते-जाते समय अपनी और अपने धन की सुरक्षा के लिए वह एक अंगरक्षक साथ रखता था।

हालाँकि अंगरक्षक को दिया जाने वाला वेतन भी उसे बहुत अखरता था। लेकिन मरता क्या न करता। एक बार वह एक प्रदेश से दूसरे प्रदेश जा रहा था। अचानक रास्ते में उन्हें दो डाकुओं ने रोक लिया। सेठ की घिग्घी बँध गयी लेकिन अंगरक्षक ने बड़ी बहादुरी से डाकुओँ का सामना किया और उन्हें बन्धक बना लिया। जान-माल बच जाने से सेठ प्रसन्न हुआ।

उसने अंगरक्षक की बहुत प्रशंसा की। इनाम की उम्मीद में अंगरक्षक ने विनम्रता से कहा, ‘यह सब हाथ में थमी तलवार के दम पर सम्भव हुआ है।’ सेठ ने सोचा कि वह बेकार ही अंगरक्षक को तनखा दे रहा है, इसकी जगह तलवार ही रख ले तो उसे बार-बार पैसे नहीं देने होंगे। सेठ ने तुरन्त अंगरक्षक की छुट्टी कर दी और उससे तलवार खरीद ली। अब सेठ उस तलवार को सिरहाने रख कर सोने लगा। इस तरह से वह चोर-डाकुओं की तरफ से निश्चिंत हो गया।

एक रात कुछ चोर सेठ के मकान में घुस आये। सेठ ने तलवार हाथ में उठायी और सोचा कि यह तलवार फिर पहले जैसा करतब दिखाएगी। पर पहले जैसा कुछ नहीं हुआ। चोरों ने सेठ के हाथ-पाँव बाँधे और सारा धन लुट ले गये। कोने में पड़ी तलवार सेठ जी को मुँह चिढाते हुए कह रही थी कि कीमत हथियार की नहीं उसे धारण करने वाले की होती है।

अपना दिमाग ही दुश्मन है10 lines short stories with moral in Hindi

एक साधु महाराज ने अपने प्रवचन में कहा कि हमारा दिमाग ही हमारा दुश्मन है। साधु की यह पंक्ति ही पण्डित स्वानन्दजी को अखर गयी। तुरंत खड़े होकर पण्डितजी ने कहा कि ‘साधु होकर आपको इस तरह की बात करना शोभा नहीं देता।

अगर मनुष्यों में दिमाग नहीं होता, तो इतने शास्त्रों की रचना नहीं हुई होती।’ साधु कुछ बोले नहीं, बस मुस्कराते रहे। साधु को मुस्कराते देख बाकी लोग भी मुस्कराने लगे। बहुत सारे लोग पण्डितजी को घूरने भी लगे। पण्डितजी तुरन्त सभा छोड़कर चल दिये।

रास्ते भर वे साधु को मन ही मन कोसते रहे। घर पहुँचकर वे बिना बात अपनी पत्नी पर क्रोधित हुए और बच्चों को भी झिड़क दिया। बिना कुछ खाए ही खटिया पर लेट गये, पर सारी रात उन्हें नींद नहीं आयी। मन ही मन कभी साधु को चोर-उचक्का बताते, तो कभी मुर्ख।

सूर्योदय हो गया। लेकिन पण्डितजी के दिमाग से साधु की बात निकल नहीं पा रहीं थी। साधु की मुस्कान रह-रह कर याद आती और लगता किसी ने जले पर नमक छिड़क दिया हो।

अन्तत: पण्डितजी को बुखार हो गया और वे बड़बड़ाने लगे कि साधु मुर्ख है, जो दिमाग को दुश्मन बता रहा है। पण्डितजी की हालत देखकर उनकी पत्नी बड़ी चिन्तित हो गयी। और उसके मुँह से निकल गया, “दिमाग पर नियन्त्रण न हो, तो सचमुच दिमाग बहुत बड़ा दुश्मन है। पत्नी की बात ने अचानक पण्डितजी के ज्ञानचक्षु खोल दिये। पण्डितजी को साधु की बात, मुस्कान का मर्म और अपनी गलती समझ में आ गयी थी।

बहू की चतुराई10 lines short stories with moral in Hindi

एक गाँव में राधे नामक व्यक्ति रहता था। उसका काम मिट्टी के खिलौने बनाना था। उसकी एक ही इच्छा थी कि उसके पुत्र का ब्याह धूमधाम से हो। उसकी बारात हाथी पर जाये। लेकिन पूरे गाँव में हाथी नहीं था।

जब उसके पुत्र के विवाह का समय आया तो बाकी सारे इन्तजाम तो हो गये लेकिन हाथी नहीं मिला किसी ने बताया कि पड़ोस के गाँव में हस्तीमल सेठ के पास हाथी है, अगर वह मान जाये तो बात बन जायेगी। राधे ने हस्तीमल से गुहार की तो हाथी मिल भी गया।

राधे का पुत्र हाथी पर सवार होकर अपनी दुल्हन को लेने निकल पड़ा। दुर्भाग्यवश बीच रास्ते हाथी गश खाकर गिर गया और उसकी मृत्यु हो गयी।

विवाह सम्पन्न होने के खाद जब हाथी लौटने की बारी आयी, तो राधे ने सेठ हस्तीमल को इस दुर्घटना का समाचार देते हुए कहा कि हाथी लौटाना तो अब सम्भव नहीं है लेकिन वह और उसका पुत्र हाथी की कीमत पाई-पाई करके चुका देंगें।

लेकिन हस्तीमल अड़ गया, ‘मुझे तो वही हाथी चाहिए।’ राधे ने बहुत समझाया लेकिन हस्तीमल नहीं माना और मामला राजा के पास ले जाने की धमकी दे डाली। परेशान राधे घर पहुँचा तो नयी बहू ने सारा माजरा समझकर कहा कि आप हस्तीमल जी को घर लायें मैं उनको हाथी दे दूंगी।

हस्तीमल के घर आने से पहले बहू ने घर का दरवाजा बन्द कर उसके पीछे मिट्टी के बर्तनों का ढेर लगा दिया। जैसे ही सेठ हस्तीमल ने थाप देकर दरवाजा खोला। मिट्टी के बर्तन टूट गये। बहू रोने लगी’ ‘आपने मेरे मिट्टी के बर्तन तोड़ दिये।’ सेठ हस्तीमल ने कहा, ‘मिट्टी के खिलौनों से कैसा मोह, चाहो तो इसके बदले पैसे ले लो’।

बहू ने कहा, ‘नहीं मुझे तो वहीं बर्तन चाहिए जैसे आपको वहीं हाथी चाहिए।’ सेठ हस्तीमल को सारी बात समझ में आ गयी। उसने कहा, ‘बहू तुम ठीके कहती हो हाथी की देह हो या मिट्टी के बर्तन, सबको मिट्टी में मिल जाना है।’ हाथी के लिए सेठ का मोहबन्धन कट गया था।

नाम का जंजाल10 lines short stories with moral in Hindi

एक गाँव से एक परदेसी गुजर रहा था। एक घर के आगे उसे दो वृद्ध औरतें और एक जवान बैठे मिले। आते-जाते लोगों से बात करना गाँव का धरम होता है। जाते हुए परदेसी से एक औरत ने सवाल किया, ‘कहाँ से आये हो बटोही? परदेसी ने कहा, ‘जयराम जी की माँ! अपने गाँव जा रहा हूँ।’

उसका यह कहना हुआ और उस औरत ने पाँव से जूती निकाल ली, ‘अरे बदमाश! मैं उनकी ‘लुगाई’ हूँ और तू मुझें उनकी माँ कह रहा है…।’ उस औरत के पति का नाम ‘जयराम’ था। साथ में दूसरी वृद्धा ने उसे समझाते हुए कहा, ‘यह क्या पागलपन कर रही हो बहन! वह बेचारा तो आपको अभिवादन कर रहा है और जाप उसे जूती मारने की बात कह रही हो।’

दूसरी वृद्धा के समझाने से पहली को बात समझ में आ गयी तो, उसने जूती वापस अपने पॉव पहन ली। दूसरी वृद्धा की बोली से परदेसी की जान में जान आयी। आभार जताते हुए उसने कहा, ‘जीता रहे आपका बेटा! इतना सुनते ही अब दूसरी वृद्धा ने परदेसी का गला पकड़ लिया और बोली, ‘तेरा बुरा हो, वे तो मेरे पति हैं, बेटे कैसे हुए?’ साथ में खड़े जवान ने परदेसी को छुड़ाते हुए कह, ‘माताराम! इसको क्या पता कि ‘जीता’ आपके पति का नाम है।’ बड़ी मुश्किल से परदेसी की जान छुटी।

जाते-जाते उसने जवान को धन्यवाद देते हुए कहा, ‘हरि तेरे साथ रहे रे भाया!’ परदेसी का इतना कहना हुआ और जवान गुस्से में आग-बबूला होता हुआ चिल्लाया, ‘तू पिटने लायक ही है परदेसी, हरि को बड़ी मुश्किल से तो घर से निकाला है।’ परदेसी को नहीं पता था कि ‘हरि’ नाम के आदमी ने जवान की हवेली पर कब्जा कर रखा था। मन ही मन उस मुहूर्त को कोसते हुए परदेसी आगे बढ़ गया, जब नाम का यह जंजाल उसके गले पड़ा।

खीर की खरखरी10 lines short stories with moral in Hindi

एक गाँव में सेठ विनोदीमल रहते थे। विनोदीमल स्वभाव से कौतुकप्रिय ये। एक बार की बात है। उनके घर भोजन का आयोजन था। कई मिठाइयों के साथ खीर भी बनी थी। भोज में गिने-चुने सम्बन्धियों को ही आमन्त्रित किया गया था। गाँव में एक मशहूर ‘जिमाकड़ा’ धापू महाराजा भी रहते थे। ‘जीमना’ यानी भोजन करना उनका सबसे बड़ा शोक था।

इसी शौक के चलते यह दूर-दराज के गाँवों में भी सिर्फ भोजन की सूचना मिलते ही पहुँच जाते थे। आमन्त्रण की उन्हें परवाह नहीं थी, सूचना ही पर्याप्त होती थी। फिर यह तो गाँव के ही सेठ विनोदीमल के घर में भोज की बात थी। ये बिना आमन्त्रण ही धापू महाराज सेठ के घर पहुँच गये। सेठ विनोदीमल समझ गये कि यह भोजन करे बिना जायेंगे नहीं।

उनके लिए भोजन परोसा गया। धापू महाराज ने जीमणा शुरू किया। जीमते हुए धापू महाराज ने देखा कि सबके लिए तो खीर परोसी जा रही है जबकि उन्हें आलू की सब्जी और पूरी से ही टरकाया जा रहा है। उन्होंने सेठजी से कहा, ‘क्यों सेठजी! हमें खीर खिलाने का धरम नहीं बनता?’ सेठजी ने विनोद करते हुए कहा, ‘बिलकुल बनता है महाराज, लेकिन क्या करें, अब जो खीर बची है,

10 lines short stories with moral in Hindi

उसमें कूत्ता मुँह मार गया। कुत्ते की जूठी खीर खिलाना, तो अधर्म की बात होगी?’ खीर की इस आनाकानी से धापू महाराज चौंके और तत्काल नहले पे दहला मारते हुए कहा,

काला कुत्ता सदा उत्तम, भूरा कुत्ता तो क्या बराबरी।

चितकबरा हो तो सर्वोतम, फिर क्यूँ केरे खराखरी !

सेठ विनोदीमल धापू की इस हाजिरजवाबी से बड़ा प्रसन्न हुआ। धापू महाराज को पेटभर खीर खिला कर तृप्त किया।

एक के चार10 lines short stories with moral in Hindi

एक जँवाई जी पहली बार पत्नी को लेने ससुराल पधारे। ससुराल में उनका बहुत मान-सम्मान हुआ। जँवाई जी अकेले ही आये थे। उनकी खातिरदारी में कोई कमी नहीं रखी गयी। भोजन का समय आया और सबसे पहले मिठाई के थाल परोसे गये। जँवाई जी ने गपागप मिठाई खायी। मिठाई से तृप्त करवाने के बाद साग और रोटी का समय आया।

जँवाई जी के लिए बहुत छोटे और पतले फुलके बनाये जा रहे थे, क्योंकि लड़की ने माँ से कहा था कि मेरे पति टिक्कड़ नहीं खाते। नफासत से खाना पसन्द करते हैं, इसलिए फुलके छोटे और पतले बनाना।

सासू माँ खुइ पास बैठकर बहुत प्रेम से खिला रही थीं। इतने पतले और छोटे फुलके देख कर जँवाई जी ने एक निवाले में एक रोती खानी शुरू कर दी। यह देखकर साथ में बैठे साले-सम्बन्धी मन ही मन हँसने लगे। जब पत्नी ने यह देखा तो सोचा कि इस तरह तो ये पीहर में मेरी और अपनी इज्जत खराब करवा देंगें।

जग-हँसाई को टालने के लिए उसने एक जतन किया। वह दरवाजे की आड़ में खडी हो गयी और जैसे ही पति से नजरें मिली, उसने पहले एक अँगुली, फिर चार अँगुलियाँ उठाकर इशारा किया कि एक रोटी के चार ग्रास करो।

जँवाई जी ने समझा कि पत्नी कह रही है कि फुलके इतने छोटे और पतले हैं कि चार फुलके एक ग्रास में खाओ। उन्होंने चार फुलके एक ग्रास में खाना शुरू कर दिया। यह देखकर घरवाली ने माथा ठोक लिया और वहाँ से खिसकने में ही भलाई समझी।

उपकार को हमेशा याद रखो10 lines short stories with moral in Hindi

दो मित्र यात्रा कर रहे थे। सफर के दौरान उनमें किसी बात पर कहासुनी हो गयी। बात इतनी बढ़ गयी कि एक मित्र ने दूसरे मित्र को थप्पड़ मार दिया। थप्पड़ खाने बाले मित्र को बहुत बुरा लगा, लेकिन बिना कुछ कहे उसने रेत में लिखा, आज मेरे सबसे अच्छे मित्र ने मुझे थप्पड़ मारा।

वे चलते रहे। एक जगह पहुंचकर उन्होंने नहाने की सोची। सबसे पहले वह मित्र पानी में उतर गया, जिसने थप्पड़ खाया था। लेकिन वह पानी नहीं दलदल था। वह उसमें फँसने लगा और मदद के लिए चिल्लाने लगा। उसके दूसरे मित्र ने उसकी आवाज सुनी और उसे बचा लिया। बाहर निकालकर उसने पत्थर पर लिखा,

10 lines short stories with moral in Hindi

आज मेरे सबसे अच्छे मित्र ने मेरी जान बचायी। थप्पड़ मारने वाले मित्र ने उससे पूछा, ‘जब मैंने तुम्हें थप्पड़ मारा, तो तुमने वह बात रेत पर लिखी और जब बचाया तब तुमने उसे पत्थर पर लिखा। ऐसा क्यों?’

मित्र ने जवाब दिया, “जब हमें कोई दु:ख दे, तब उसे रेत पर लिख देना चाहिए ताकि हवाएँ आकर उसे मिटा दें। लेकिन जब कोई हमारा भला करे, तब उसे पत्थर पर लिख देना चाहिए ताकि हमेशा के लिए लिखा रह जाये और दूसरों के लिए सबक बन जाये।’

अपयश (10 lines short stories with moral in Hindi)

श्रावस्ती में विदेहिका नाम की एक महिला रहती थी। वह अपने शान्त और सौंम्य व्यवहार के कारण दूर-दूर तक प्रसिद्ध थी। सभी लोग मानते थे कि विदेहिका जैसी मृदु व्यवहार वाली दूसरी स्त्री पूरे श्रावस्ती में नहीं है। विदेहिका के घर में एक नौकर काम करता था, जिसका नाम काली था। वह अपने काम में बहुत कुशल और वफादार था।

एक दिन काली ने सोचा, सभी लोग कहते हैं कि मेरी मालकिन बहुत शान्त स्वभाव वाली हैं। उसे कभी क्रोध नहीं आता। किसी इनसान को क्रोध न आये यह कैसे सम्भव है? शायद में अपने काम में अच्छा हूँ इसलिए वह मुझ पर कभी क्रोधित नहीं होती। क्यों न में मालकिन की परीक्षा लूँ और देखूँ उन्हें क्रोध आता है या नहीं।

अगले दिन काली काम पर कुछ देरी से आया। विदेहिका ने जब उससे देर से आने का कारण पूछा, तो वह बोला, ‘कोई खास बात नहीं हैं। यू ही देर हो गयी।’ विदेहिका ने कुछ कहा तो नहीं, पर उसे काली का जवाब अच्छा नहीं लगा। दुसरे दिन काली और ज्यादा देर से आया। विदेहिका ने फिर उससे देरी से आने का कारण पूछा।

10 lines short stories with moral in Hindi

काली ने फिर वही जवाब दिया, ‘कोई खास बात नहीं। ऐसे ही देर हो गयी।’ यह सुनकर विदेहिका बहुत नाराज हुई, लेकिन चुप रही। तीसरे दिन काली और भी अधिक देरी से आया। विदेहिका के कारण पुछने पर उसने वही जवाब दिया।

इस बार विदेहिका ने अपना आपा खो दिया और काली पर चिल्लाने लगी। उसके चिल्लाने पर काली जोर-जोर से हँसने लगा। उसे हँसता देख विदेहिका का गुस्सा और भड़क गया। उसने कोने में पड़ा डंडा उठाया और उसे मारने लगी। काली चिल्लाता हुआ घर से बाहर भागा। उसकी आवाज सुनकर वहाँ भीड़ जमा हो गयी।

काली ने वहाँ जमा लोगों से कहा, ‘आप लाग तो कहते थे कि मालकिन को कभी गुस्सा नहीं जाता। तो यह क्या है? इस तरह विदेहिका की वर्षों से बनायी ख्याति मिट्टी में मिल गयी। इसीलिए कहा गया है कि अपने गुणों का किसी भी परिस्थिति में त्याग नहीं करना चाहिए, वरना अपयश ही हाथ लगता है।

दो बाल्टियों की कहानी (10 lines short stories with moral in Hindi)

किसी गाँव में रामसखा नाम का एक किसान रहता था। उसे बहुत दूर से पीने के लिए पानी भरकर लाना पड़ता था। उसके पास दो बाल्टियाँ थी। वह उन्हें डण्डे के दोनों सिरों पर बाँध देता था। उनमें से एक बाल्टी के तले में छोटा-सा छेद था और दूसरी बाल्टी बहुत अच्छी हालत में थी। तालाब से घर तक पहुँचते-पहुँचते छेद वाली बाल्टी का पानी आधा रह जाता था। सिर्फ डेढ़ बाल्टी ही वह घर तक ला पाता था।

यह देखकर अच्छी बाल्टी को खुद पर घमण्ड होने लगा। वह छेद वाली बाल्टी से हर रोज कहा करती, ‘मुझमें से जरा-सा भी पानी नहीं रिसता, जबकि तुम आधा पानी तो रास्ते में ही बेकार कर देती हो।’ यह सुनकर छेद वाली बाल्टी को बहुत दु:ख होता।

10 lines short stories with moral in Hindi

एक दिन रास्ते में उसने किसान से कहा, ‘मैं अच्छी बाल्टी नहीं हूँ। मेरे तले में छेद होने के कारण आधा पानी तो रास्ते में ही बेकार हो जाता है। तुम मुझे फेंक क्यों नहीं देतें?”

किसान ने कहा, ‘यह बात तो मुझे भी पता है कि तुम्हारे तले में छेद हैं, लेकिन फिर भी मैं रोज तुम्हें लेकर आता हूँ। क्या तुमने कभी घर और तालाब के बीच की पगडण्डी पर गौर किया है? पगडण्डी के जिस ओर तुम होती हो, उस ओर हरियाली है और सुन्दर-सुन्दर फूल खिले है। जबकि दूसरी ओर ऐसा नहीं है। मैंने तुम्हारी तरफ वाली पगडण्डी पर फूलों के बीज बो दिये थे।

तुमसे गिरने वाले पानी से उनकी सिंचाई हो जाती है और तुम कहती हो कि तुम बेकार हो। अगर तुम नहीं होती, तो ये फूल भी नहीं खिल पाते।’ यह सुनकर छेद वाली बाल्टी को खुद के महत्व का पता चल गया और वह खुश हो गयी। बिना छेदवाली बाल्टी का घमण्ड चूर-चूर हो गया। उसे भी अपनी औकात का मान हो चुका था।

मछली और पानी (10 lines short stories with moral in Hindi)

घनश्याम रोज शाम समुद्र तट पर टहलने जाता। वह अकसर देखता कि शिवराज नाम का एक लड़का समुद्र तट पर झुककर कुछ उठाता ओर आहिस्ता से पानी में डाल देता।

एक दिन घनश्याम उसके पास गया। उसने शिवराज से पूछा, ‘मैं रोज देखता हूँ कि तुम यहाँ से कुछ उठाते हो और पानी में डाल देते हो। तुम यह क्या करते हो?

शिवराज बोला, ‘मैँ समुद्र तट पर पड़ी मछलियों को पानी में दोबारा डाल देता हूँ।

लेकिन इन्हें दोबारा पानी में डालने की क्या जरूरत हैं? ये तो मर जाती हैं। घलश्याम बोला।

शिवराज ने कहा, ‘लहरों के साथ ये मछलियाँ किनारे पर आ जाती हैं और सूरज की गर्मी से मर जाती हैं। इनमें से जो जीवित होती हैं, उन्हें मैं पानी में डाल देता ताकि वे बच सकें।’

घनश्याम ने देखा समुद्र तट पर दूर-दूर तक मछलियाँ बिखरी पड़ी हैं। उसने शिवराज से कहा, ‘मीलों लम्बे समुद्र तट पर न जाने कितनी मछलियाँ पड़ी हुई हैं। इनमें से कुछ एक को पानी में डालने से तुम्हें क्या मिलेगा? शिवराज झुका, उसने एक मछली उठायी और धीरे से समुद्र में डालते हुए कहा, ‘लेकिन इसे तो सब कुछ मिल जायेगा।’

उम्र का फेर (10 lines short stories with moral in Hindi)

इकक्यू नामक एक शिष्य था। वह शिक्षा लेने के लिए एक आश्रम में रहता था। उसके गुरु के पास एक चाय का कप था, जिससे उन्हें बेहद लगाव था। एक दिन साफ-सफाई के दोरान इक्क्यू के हाथ से वह कप टूट गया। कुछ टूटने की आवाज सुनकर गुरु रसोईघर में आने लगें। गुरु के आने की आहट सुनकर इकक्यू ने दूटा कप अपने पीछे छूपा लिया। गुरु ने वहाँ आकर पूछा, ‘इकक्यू, क्या टूटने की आवाज आयी थी?’

इकक्यू ने कहा, ‘गुरुजी, लोग मरते क्यो है? शिष्य का सवाल सुनकर गुरु अचम्भित हो गये। वे सोचने लगे भला मेरे सवाल का यह कैसा जवाब है। उन्होंने कहा, ‘मृत्यु प्राकृतिक नियम है। हर चीज की उम्र निश्चित होती है। जब उसकी उम्र खत्म हो जाती हैं, तो उसकी मृत्यु हो जाती है।’

इक्क्यू ने डरते हुए टूटा हुआ कप गुरु को दिखाते हुए कहा, ‘कुछ पल पहले आपके कप की उम्र भी पूरी हो गयी थी।

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