Kumar vishwas kavita lyrics in Hindi :-
ओ प्रीत भरे, संगीत भरे!
ओ मेरे पहले प्यार!
मुझे तू याद न आया कर।
ओ शक्ति भरे, अनुरक्ति भरे!
नस-नस के पहले ज्वार!
मुझे तू याद न आया कर।
पावस की प्रथम फुहारों से
जिसने मुझको कुछ बोल दिये
मेरे आँसू, मुस्कानों की
क़ीमत पर जिसने तोल दिये
जिसने अहसास दिया मुझको
मैं अम्बर तक उठ सकता हूँ
जिसने खुद को बांधा लेकिन
मेरे सब बंधन खोल दिये।
ओ अनजाने आकर्षण से!
ओ पावन मधुर समर्पण से!
मेरे गीतों के सार!
मुझे तू याद न आया कर।
ओ मेरे पहले प्यार!
मुझे तू याद न आया कर।
मुझको ये पता चला मधुरे!
तू भी पागल बन रोती है
जो पीर मेरे अन्तर में है
तेरे मन में भी होती है
लेकिन इन बातों से किंचित भी
अपना धैर्य नहीं खोना
मेर मन की सीपी में अब तक
तेरे मन की मोती है
ओ सहज सरल पलकों वाले!
ओ कुँचित घन अलकों वाले।
हंसते-गाते स्वीकार!
मुझे तू याद न आया कर।
ओ मेरे पहले प्यार!
मुझे तू याद न आया कर।
कुछ पल बाद बिछुड़ जाओगे
कुछ पल बाद बिछुड़ जाओगे मीत मेरे!
किन्तु तुम्हारे साथ रहेंगे गीत मेरे
तुम परिभाषाओं से आगे का, आधार बनाते चलना
तुम साहस से सपनों का, सुन्दर संसार बनाते चलना
जीवन की सारी कटुता को, केवल प्यार बनाते चलना
तुम जीवन को, गंगाजल की पावन-धार बनाते चलना
स्वयं उदाहरण बन जाना मनमीत मेरे
किन्तु तुम्हारे साथ रहेंगे गीत मेरे!
वो जो पल, संग-संग गुजरे थे, वो सब पल, मधुमास हो गए
हँसने, खिलने, मिलने के सब, घटनाक्रम इतिहास हो गए
जीवन भर सालेगी अब जो, ऐसी मीठी-प्यास हो गए
हमसे इतने दूर हो गए, किसके इतने पास हो गए
तुम बिन सपने हैं सारे भयभीत मेरे
किन्तु तुम्हारे साथ रहेंगे गीत मेरे!
तुम गये
तुम गये तुम्हारे साथ गया,
अल्हड़-अन्तर का भोलापन।
कच्चे-सपनों की नींद और,
आँखों का सहज सलोनापन।
तुम गये तुम्हारे साथ गया….
जीवन की कोरों से दहकीं
यौवन की अग्नि-शिखाओं में,
तुम अगन रहे, मैं मगन रहा,
घर-बाहर की बाधाओं में
जो रूप-रूप भटकी होगी,
वह पावन-आस तुम्हारी थी।
जो बूंद-बूंद तरसी होगी,
वह आदिम-प्यास तुम्हारी थी।
तुम तो मेरी सारी प्यासें
पनघट तक लाकर लौट गये,
अब निपट-अकेलेपन पर हंस देता
निर्मम-जल का दर्पण।
तुम गये तुम्हारे साथ गया…
यश-वैभव के ये ठाठ-बाट,
अब सभी झमेले लगते हैं
पथ कितना भी हो भीड़ भरा
दो पाँव अकेले लगते हैं
हल करते-करते उलझ गया,
भोली-सी एक पहेली को,
चुपचाप देखता रहता हूँ,
सोने से मँढ़ी हथेली को।
जितना रोता तुम छोड़ गये,
उससे ज्यादा हँसता हूँ अब
पर इन्हीं ठहाकों की गूंजों में
बज उठता है खालीपन।
तुम गये तुम्हारे साथ गया,
अल्हड़-अन्तर का भोलापन।
कच्चे सपनों की नींद और,
आँखों का सहज सलोनापन।
तुम गये तुम्हारे साथ गया….
तुम बिन
तुम बिन कितने आज अकेले,
क्या हम तुमको बतलायें?
अम्बर में है चाँद अकेला,
तारे उसके साथ तो हैं,
तारे भी छुप जाएँ अगर तो,
साथ अँधेरी रात तो है,
पर हम तो दिन-रात अकेले
क्या हम तुमको बतलायें?
जिन राहों पर हम-तुम संग थे,
वो राहें ये पूछ रही हैं
कितनी तन्हा बीत चुकी हैं,
कितनी तन्हा और रही है
दिल दो हैं, जज्बात अकेले,
क्या हम तुमको बतलायें?
वो लम्हें क्या याद हैं तुमको
जिनमें तुम-हम हमजोली थे,
महका-महका घर-आँगन था
रात दिवाली, दिन होली थी
अब हैं, सब त्यौहार अकेले,
क्या हम तुमको बतलायें?
कितने दिन बीत गए
कितने दिन बीत गए,
देह-की नदी में
नहाए हुए
सपने की फिसलन के डर जैसा,
दीप बुझी देहरी के घर जैसा,
जलती लौ नेह चुके दीपक-सा,
दिन डूबा वंशी के स्वर जैसा,
कितने सुर रीत गए,
अन्तर का गीत कोई
गाए हुए
कितने दिन बीत गए।
कुछ ऐसा पाना जो जग छूटे,
मंथन वो जिससे झरना फूटे,
बिन बांधे बंधने का वो कौशल,
जो बांधे तो हर बंधन टूटे,
कितने सुख जीत गए,
पोर-पोर पीड़ा
कमाए हुए
कितने दिन बीत गए।
पँछी ने खोल दिए पर
पँछी ने खोल दिए पर
अब चाहे लीले अम्बर…
कितने तूफ़ानों की संजीवनी सिमटी है
इन छोटे-छोटे दो पँखों की आड़ में
चन्दा की आँखों में सूरज के सपने हैं
मनवा का हिरना ज्यों क़िस्मत की बाड़ में
मारग में सिरजा है घर
अब चाहे लीले अम्बर…
प्रहरों अन्धे तम का अनाचार सहकर जब
कलरव जागा तो सब भ्रम-भय भी भाग गया
जब निर्वाणी-तिथि निश्चित है उषा में तो
अरुण-शिखा का विस्मृत-पौरुष भी जाग गया
मुक्त हुआ अन्तर से डर
अब चाहे लीले अम्बर…
फिर बसन्त आना है
तूफानी लहरें हों,
अम्बर के पहरे हों,
पुरुवा के दामन पर दाग बहुत गहरे हों,
सागर के माँझी। मत मन को तू हारना,
जीवन के क्रम में जो खोया है पाना है
पतझर का मतलब है
फिर बसन्त आना है।
राजवंश रूठे तो!
राजमुकुट टूटे तो!
सीतापति राघव से राजमहल छूटे तो
आशा मत हार,
पर सागर के एक बार,
पत्थर में प्राण फूँक सेतु फिर बनाना है
अँधियारे के आगे, दीप फिर जलाना है।
पतझर का मतलब है
फिर बसन्त आना है।
घर-भर चाहे छोड़े,
सूरज भी मुँह मोड़े!
विदुर रहें मौन, छिनें राज्य, स्वर्ण रथ, घोड़े
माँ का बस प्यार, सार गीता का साथ रहे,
पंचतत्त्व सौ पर हैं भारी बतलाना है।
जीवन का राजसूय यज्ञ फिर कराना है।
पतझर का मतलब है
फिर बसन्त आना है।
इतनी रंग-बिरंगी दुनियां
इतनी रंग-बिरंगी दुनियां, दो आँखों में कैसे आये,
हमसे पूछो इतने अनुभव, एक कंठ से कैसे गाये।
ऐसे उजले लोग मिले जो, अंदर से बेहद काले थे,
ऐसे चतुर मिले जो, मन से सहज-सरल भोले-भाले थे।
ऐसे धनी मिले जो, कंगालों से भी ज्यादा रीते थे,
ऐसे मिले फ़कीर, जो सोने के घट में पानी पीते थे।
मिले परायेपन से अपने, अपनेपन से मिले पराये,
हमसे पूछो इतने अनुभव, एक कंठ से कैसे गाये।
इतनी रंग-बिरंगी दुनियां, दो आँखों में कैसे आये,
जिनको जगत-विजेता समझा, मन के द्वारे हारे निकले,
जो हारे-हारे लगते थे, अंदर से ध्रुव-तारे निकले,
जिनको पतवारें सौंपी थी, वे भँवरों के सूदखोर थे,
जिनको भंवर समझ डरता था, आखिर वही किनारे निकले।
वे मंजिल तक क्या पहुँचेगें, जिनको खुद रस्ता भटकाये।
हमसे पूछो इतने अनुभव, एक कंठ से कैसे गाये।
इतनी रंग-बिरंगी दुनियां, दो आँखों में कैसे आये।
सूरज पर प्रतिबन्ध अनेकों
सूरज पर प्रतिबन्ध अनेकों, और भरोसा रातों पर
नयन हमारे सीख रहे हैं, हँसना झूठी बातों पर
हमने जीवन की चौसर पर
दाँव लगाए आँसू वाले
कुछ लोगों ने हर पल, हर छिन
मौक़े देखे बदले पाले
हर शंकित सच पर अपने, वे मुग्ध स्वयं की घातों पर
नयन हमारे सीख रहे हैं, हँसना झूठी बातों पर
हम तक आकर लौट गयी हैं
मौसम की बेशर्म-कपाएँ
हमने सेहरे के संग बांधी
अपनी सब मासूम ख़ताएँ
हमने कभी न रखा स्वयं को, अवसर के अनुपातों पर
नयन हमारे सीख रहे हैं, हँसना झूठी बातों पर
kumar vishwas kavita lyrics in hindi
पिता की याद
फिर पुराने नीम के नीचे खड़ा हूँ
फिर पिता की याद आयी है मुझे
नीम-सी यादें हृदय में चुप समेटे
चारपाई डाल, आँगन बीच लेटे
सोचते हैं हित, सदा उनके घरों का
दूर हैं जो एक बेटी, चार बेटे
फिर कोई रख हाथ काँधे पर
कहीं यह पूछता है
“क्यूँ अकेला हूँ भरी इस भीड़ में”
मैं रो पड़ा हूं
फिर पिता की याद आयी है मुझे
फिर पुराने नीम के नीचे खड़ा हूँ
उन
सपनों को
जो
अपनों ने तोड़ दिए…
पूरा जीवन
बीत गया है
बस तुमको गा,
भर लेने में…
हर पल
कुछ-कुछ रीत गया है,
पल जीने में,
पल मरने में,
इसमें
कितना औरों का है,
अब इस गुत्थी को
क्या खोलें,
गीत, भूमिका
सब कुछ तुम हो
अब इससे आगे
क्या बोले….
सब का कुछ-न-कुछ उधार है, सो सबका आभार है….
यों गाया है हमने तुमको…
बाँसुरी चली आओ
मन तुम्हारा हो गया
मैं तुम्हें ढूँढ़ने
प्यार नहीं दे पाऊँगा
नुमाइश
तुम गए क्या
बेशक जमाना पास था
सफाई मत देना
बादड़ियो गगरिया भर दे
धीरे-धीरे चल री पवन
क्या समर्पित करूँ
मेरे मन के गाँव में
माँग की सिंदूर रेखा
चाँद ने कहा हैं
मधुयामिनी
ये वही पुरानी राहें हैं
लड़कियां
होली
ओ मेरे पहले प्यार
कुछ पल बाद बिछुड़ जाओगे
तुम गये
तुम बिन
कितने दिन बीत गए
पँछी ने खोल दिए पर
फिर बसन्त आना है
इतनी रंग-बिरंगी दुनिया
सूरज पर प्रतिबन्ध अनेकों
पिता की याद
पीर का सँदेशा आया
मैं तुम्हें अधिकार दूँगा
मुझको जीना होगा
तन-मन महका
प्यार माँग लेना
आना तुम
आज तुम मिल गए
देहरी पर धरा दीप
तुमने जाने क्या पिला दिया
ये गीत तुम्हें कैसे दे दूँ
तुम बिना मैं
हार गया तन-मन
राई से दिन बीत रहे हैं
तुम स्वयं को सजाती रहो
कैसे ऋतु बीतेगी
रात भर तो जलो
स्मरण गीत
जाड़ों की गुनगुनी धूप तुम
बिन गाये भी तुमको गाया
इक पगली लड़की के बिन
किस्सा रूपारानी
मैं उसको भूल ही जाऊँगा
मद्यँतिका (मेहँदी)
हैं नमन उनको
ये रदीफ़ों क़ाफ़िया
मैं तो झोंका हूँ
हर सदा पैगाम
उनकी खैरों-खबर
रंग दुनिया ने
सब तमन्नायें हो पूरी
दिल तो करता है
पल की बात थी
चन्द कलियाँ निशांत की
कोई दीवाना कहता है