सम्राट अशोक का सही इतिहास Hindi में | सम्राट अशोक की जीवनी

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सम्राट अशोक का सही इतिहास | सम्राट अशोक की जीवनी:- मौर्य काल के बारे में मेगस्थनीज ने लिखा है कि भारतवर्ष के लोग कभी झूठ नहीं बोलते, मकानों में ताले नहीं लगाते और न्यायालयों में बहुत कम जाते हैं। निश्चित प्राचीन भारत के इतिहास में मौर्य काल स्वर्ण युग था। तब पाटलिपुत्र दुनिया के गिने – चुने प्राचीन नगरों में एक था।

1. जो जीता वह सिकंदर है !

जो सिकंदर को जिताया वह सिल्यूकस है!!

और जो सिल्यूकस को भी जीता वह मौर्य है !!!

पाटलिपुत्र के मध्य में मौर्यों का राजप्रासाद स्थित था। स्ट्रैबो ने लिखा है कि पाटलिपुत्र का राजभवन एशिया के प्रसिद्ध सूसा तथा एकबटना के राजभवन से कहीं अधिक शानदार था। जो लोग मौर्य कला पर ईरानी कला के प्रभाव के पक्षपाती हैं, उन्हें इसका जवाब खोजना चाहिए।

मेगस्थनीज ने लिखा है कि मौर्यों के शाही महल के स्तंभों पर सोने की बेलें चढ़ी थीं …. चाँदी के पक्षियों को उन पर सजाया गया था। सोने – चाँदी से शाही महल सुसज्जित था। कोई पाँच सौ साल बाद आए चीनी यात्री फाहियान ने जब पाटलिपुत्र स्थित राजभवन को देखा, तब दंग रह गया, लिखा कि शहर के बीच शाही महल और उसके हाॅल पहले की तरह अब भी खड़े हैं। वह दाँतों तले ऊँगली दबाकर आश्चर्य व्यक्त किया कि ऐसा निर्माण – कार्य मानव – शक्ति के बूते की बात नहीं है।

3. सतयुग की अवधारणा क्या है?

यहीं कि तब लोग सत्य बोलते थे। झूठ नहीं बोलते थे।

चोरी- डकैती नहीं थी। घर में ताले नहीं लगते थे। लोग ईमानदार थे।

आपस में भाई – चारे का नाता था। परस्पर झगड़ा – झंझट कम था। शांति थी।

यदि प्राचीन भारत में ऐसी स्थिति की कोई कमोबेश झलक मिलती है तो वह मौर्य काल में मिलती है।

मौर्य काल के बारे में मेगस्थनीज ने लिखा है कि भारत के लोग कभी झूठ नहीं बोलते, मकानों में ताले नहीं लगाते और न्यायालयों में बहुत कम जाते हैं।

यदि प्राचीन भारत में सतयुग की कमोबेश परिकल्पना की जा सकती है तो वह मौर्य काल ही होगा।

अशोक के राजपद का आदर्श था कि हर समय और हर जगह पर मुझे जनता की आवाज सुनने के लिए बुलाया जा सकता है। चाहे मैं भोजन कर रहा होऊँ, चाहे अंतःपुर में होऊँ, मैं सो रहा होऊँ या अपने उद्यान में होऊँ, मेरे राज्य के अधिकारी जनता की कोई भी बात मुझ तक पहुँचा सकते हैं। सर्व लोकहित मेरा कर्तव्य है। सर्व लोकहित से बढ़कर कोई दूसरा कर्म नहीं है।

याद कीजिए …. भारत का वो स्वर्ण युग …. तब अफगानिस्तान,

पाकिस्तान और बंगलादेश सभी जंबूद्वीप के हिस्से थे …. कोई

शरणार्थी नहीं …. सभी यहीं के नागरिक थे।

सभी मनुष्यों को अपनी संतान मानने वाले सम्राट अशोक ने जगह – जगह मनुष्यों और पशुओं के लिए चिकित्सालय बनवाए और कुएँ खुदवाए। सड़कें बनवाईं। सड़कों पर पेड़ लगवाए। अशोक अपने जनहितकारी कार्यों के लिए सर्वाधिक प्रसिद्ध हैं और इस क्षेत्र में उनकी जोड़ का दूसरा शासक इतिहास में मिलना कठिन है।

मौर्य राजवंश की उत्पत्ति

मौर्य राजवंश की उत्पत्ति में इतिहासकारों ने विष्णु पुराण और विष्णु पुराण की टीका का भरपूर इस्तेमाल किया है, यह मानकर कि यह काफी प्राचीन है और इसीलिए इसका सबूत भी मजबूत है।

मगर विष्णु पुराण की टीका की बात छोड़िए, खुद विष्णु पुराण में कैंकिल राजाओं ( 4.54.55 ) का वर्णन है और इन कैंकिल राजाओं ने आंध्र देश पर 500 ई. से 900 ई. तक राज्य किया था।

जाहिर है कि विष्णु पुराण की टीका मौर्य राजाओं के सैकड़ों साल बाद की लिखी किताब है और इतिहासकारों को इसका इस्तेमाल इसी रूप में करना चाहिए ।

अतः मौर्यवंशी शासन व्यवस्था और इतिहास के लेखन में जिन अनेक पुराणों का इस्तेमाल इतिहासकार करते हैं, उनकी काल – प्रामाणिकता संदिग्ध है और ऐसी सामग्री इतिहास को खतरे में डालती है।

वाराह पुराण और स्कंद पुराण में रामानुजाचार्य का उल्लेख है, जबकि रामानुजाचार्य 11 वीं सदी में थे।

भविष्य पुराण में तो मुगल काल क्या, अंग्रेजों के काल तक वर्णन है। विक्टोरिया का इतिहास भी इसमें दर्ज है।

झूठ है कि मौर्यों की उत्पत्ति किसी मुरा नामक दासी से हुई थी।

मोरिय का संस्कृत रूप मौर्य है।

पालि, प्राकृत और संस्कृत किसी भी भाषा के व्याकरण के अनुसार मुरा से मौर्य शब्द नहीं बनेगा।

मुरा नामक दासी की कहानी मौर्य वंश को बदनाम करने के लिए बाद में गढ़ी गई है।

मोरिय वास्तविक है और मौर्य कृत्रिम है वरना गया में आज भी फल्गु तट पर मोरिया घाट तथा कैमूर में बसहा गाँव के पास स्थित अशोक शिलालेख की पहाड़ी मठ मोरिया नाम से नहीं जानी जाती।

मोरिय गण का टोटेम था मोर ( पक्षी )। मोर न तो आर्यों का है, न द्रविड़ों का। मोर आस्ट्रिकों का है।

मोर की जड़ आर्य- द्रविड़ भाषाओं में नहीं मिलेगी। इसकी जड़ आस्ट्रिकों की भाषाओं में मिलेगी।

संताली, मुंडारी, हो, मोन, शबर, मलय आदि आस्ट्रिक भाषाएँ हैं। ये भाषाएँ हजारों – हजार मिल की दूरी पर हैं। अचूक एकता है इनमें, मगर आसपास की सटी भाषाओं से एकदम बेखबर!

देखिए एकता का सूत्र इन्हें कैसे बाँधता है? मोर को संताली में माराक, मुंडारी में मराअः, हो में मरः, मोन में म्राक, शबर में मर, मलय में मेर आदि कहा जाता है।

मोरिय गण का नस्ल – सिद्धांत यही से प्रतिपादित होगा।

सम्राट अशोक

1. सम्राट अशोक का सिंहचतुर्मुख ने सबसे पहले बौद्ध कला को प्रभावित किया और गौतम बुद्ध की चार मुख वाली मूर्ति को जन्म दिया, फिर ब्रह्मा के चार मुख की परिकल्पना की गई।
2. पुल बाँध कर लंका जीता गया …यह पुरुषोत्तम श्रीराम की मर्यादा थी और बगैर समुद्र में पुल बाँधे ….बगैर खून – खराबे के लंका जीत लिया गया ….वो सम्राट असोक की गरिमा थी।

कलिंग युद्ध के बाद सम्राट अशोक ने गंगा घाटी के धर्म को उठाकर विश्व धर्म का रूप दे डाले। लेनिन ने मार्क्स के सिद्धांतों को लागू किए और अशोक ने बुद्ध के सिद्धांतों को लागू किए तथा इस सिद्धांत पर चलकर वे दुनिया में वो मुकाम और शोहरत हासिल किए जो कम ही सम्राटों को नसीब हुए। जिस दार्शनिक और दर्शन की खोज में सम्राट अशोक के पिता यूनान तक अपनी आँखें गड़ाए हुए थे, अशोक की आँखों ने वो दार्शनिक और दर्शन यहीं भारत में ही खोज निकाले।

सम्राट अशोक के स्तंभ और शिलालेख देश के एक कोने से दूसरे कोने तक बिखरे पड़े हैं। उन्होंने भिक्षुओं के लिए पाषाणों को कटवाकर गुहाएँ बनवाईं, बौद्ध परंपरा के अनुसार 84 हजार स्तूपों का निर्माण कराए और जगह – जगह स्तंभ खड़ा किए, जिसकी चमक शानदार है। अशोक स्तंभ कारीगरी के अनोखे नमूने हैं। 40 – 50 फीट ऊँचा एक ही पत्थर के बने हुए जिनकी चिकनाई से प्रत्येक युग के वासी चकित होते आए हैं। सारनाथ स्तंभ पर सिंहों की जैसी शक्ति का प्रदर्शन है, उनकी फूली हुई नसों में जैसी स्वाभाविकता है, वह न केवल इस देश के बल्कि समस्त संसार के मूर्ति विन्यास में अप्रतिम है।

मौर्य प्रशासन वस्तुतः अनुशासन था। जयचंद्र विद्यालंकार इसे अनुशासन ही मानते हैं। सुविधा के हिसाब से इसे प्रशासन भी कहें तो रोमिला थापर ने लिखा है कि मौर्य शासन – प्रणाली विस्तृत रूप से नियोजित की गई थी, जिसमें अनेक विभाग तथा अधिकारी थे, जिनके कार्य पूर्णतः स्पष्ट कर दिए गए थे।

ऐसा प्रतीत होता है कि यह प्रशासन अकबर के शासन काल में मुगल – साम्राज्य के प्रशासन से कहीं अधिक संगठित था। सेना भी ऐसी कि सेल्यूकस की फौज को हारनी पड़ी, जबकि मुगल सेना दुर्बल पुर्तगाली फौज से हार गई। सही अर्थों में सम्राट अशोक प्रथम राष्ट्रीय शासक थे, जिन्होंने पूरे राष्ट्र को एक भाषा और लिपि देकर एकता के सूत्र में बाँध दिए। स्वतंत्र भारत ने सारनाथ स्तंभ के सिंह – शीर्ष को अपने राजचिह्न के रूप में ग्रहण कर मानवता के इस महान नायक के प्रति अपनी सच्ची श्रद्धांजलि अर्पित की है।

महाभारत – कथा पर बुद्ध और सम्राट अशोक का प्रभाव।

महाभारत महाकाव्य है। युधिष्ठिर इस महाकाव्य के पात्र हैं। कलिंग के रक्तरंजित भीषण युद्ध से सम्राट अशोक शोकाकुल हो उठते हैं और महाभारत के रक्तरंजित भीषण युद्ध से युधिष्ठिर शोककुल हो उठते हैं।

युधिष्ठिर संन्यास लेने की बात करते हैं। उन्हें राजसिंहासन व्यर्थ लगता है। बाद में मनाए जाने पर राजा बनने को तैयार होते हैं। मगर युधिष्ठिर राजा बनने पर धर्म का अनुशीलन करते हैं। इसीलिए वे धर्मराज कहलाए।

सम्राट अशोक धम्म का अनुशीलन करते हैं। इस अर्थ में कहा जा सकता है कि महाकाव्य के कवि ने युधिष्ठिर के चरित्र – चित्रण में ऐतिहासिक नायक सम्राट अशोक के व्यक्तित्व के कुछ अंशों का इस्तेमाल किया है।

यह कथा महाभारत के ” शांति पर्व ” में है। युद्ध से ऊबे लोगों ने शांति की राह चलने को प्रेरित हुए और यह प्रेरणा बुद्ध से मिली थी।

गणपति बप्पा मोरया!

मौर्य राजे मोरिय गण के थे। वहीं गणपति मोरया थे।

बुद्ध के धम्म में मौर्यों की आस्था थी।

बुद्ध विनय ( विनयपिटक) के अधिष्ठाता थे।

विनय के आधार पर बुद्ध का एक नाम विनायक था। भदंत आनंद कौशल्यायन के पालि – हिंदी कोश में इसे देखा जा सकता है।

बुद्ध अष्टांगिक मार्ग के भी सर्जक थे। इसलिए वे अष्टविनायक भी थे।

आखिर गणपति बप्पा मोरया में अष्टविनायक का ही आह्वान किया जाता है।

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