दोस्तों आज हम बच्चो के लिए कुछ इंटरेस्टिंग कहानियाँ लेकर आये है Small short stories with moral values in Hindi निचे कुछ कहानिया है जो आपको पढ़ने में मजेदार लगेगी |
ये Short moral stories in Hindi कहानिया आपको आपके क्लास होम वर्क में भी बहुत मदद करेंगी
मेहनत की कमाई (Short moral stories in Hindi)
एक गाँव में बिरजू नाम का किसान रहता था। दिन-रात मेहनत करके वह दो वक्स की रोटी कमा पाता था। उसके घर में उसकी पत्नी और एक बेटा बजरंग था। बजरंग को पैसों की कीमत पता नहीं थी। बिरजू की पत्नी उससे छिपाकर बजरंग को पैसे देती रहती। बिरजू ने कई बार अपनी पत्नी को समझाया भी लेकिन उसकी समझ में कुछ नहीं आया। अब किसान बूढ़ा हो चला था और चाहता था कि उसका बेटा बजरंग खेती करने में उलका हाथ बटाये, लेकिन बजरंग को इसमें कोई रुचि नहीं थी।
एक दिन बिरजू ने अपने बेटे से कहा, ‘तू अपनी मेहनत से पैसे कमा ताकि मुझे भी तुझ पर गर्व हो।’ बजरंग ने सोचा इसमें कौन-सी बड़ी बात है। उसने अपने दोस्त के घर से एक रुपया चुराया और शाम को बिरजू के हाथ में रख दिया। बिरजू ने उस सिक्के को भट्टी में फेंक दिया। यह सब देखकर बजरंग कुछ नहीं बोला। दूसरे दिन बजरंग ने अपनी माँ से पैसे लिये और पिता को दे दिये। बिरजू ने उन सिक्कों को भी भट्टी में फेंक दिया। बजरंग समझ नहीं पा रहा था कि आखिर बापू को कैसे पता चल जाता है कि ये पैसे उसने नहीं कमाये।
अगले दिन उसने खुद मेहनत करके पैसे कमाने की सोची। दिण-भर काम करने के बाद उसे जो पैसे मिले, वो उसने शाम को पिता के हाथों में रख दिये। जैसे ठी बिरजू उन्हें भट्टी में फेंकने लगा, बजरंग ने उसका हाथ पकड़ लिया और कहा, ‘बापु, ये मेरी मेहनत की कमाई है। इसे भट्टी में क्यों फेंक रहे हो?” यह देख बिरजू ने कहा, ‘बेटा, आज तूने सबक सीखा है कि पैसा कितनी मेहनत से आता है। उसे खर्च करना आसान है, लेकिन कमाना बहुत मुश्किल है।’ यह सुनकर बजरंग की आँखे भर आयीं और उसने फिजूलखर्ची बन्द करके खेती में अपने पिता का हाथ बटाना शुरू कर दिया।
समझदार बहू (Short moral stories in Hindi)
भूपेन्द्र सिंह ने अपने इकलौते बेटे की शादी खूब धूमधाम से की। एक दिन उसने अपनी बहू की बुद्धिमानी की परीक्षा लेने की सोची। उसने अपनी बहू से पूछा, “क्या तुम बता सकती हो कि मैंने तुम्हारी शादी में कितना खर्चा किया? बहू ने जवाब दिया, ‘एक चावल की बोरी की कीमत के बराबर।’ भूपेन्द्र सिंह का मुँह आश्चर्य से खुला रह गया। कुछ दिनों बाद भूपेन्द्र सिंह अपने परिवार के साथ एक रिश्तेदार के यहाँ शादी में जा रहा थे। रास्ते में उन्होंने एक शवयात्रा देखी एक व्यक्ति को रोककर उसने पूछा, ‘किसकी मृत्यु हुई है? तभी बहू बोल पड़ी, ‘तुम लोग केवल एक व्यक्ति के लिए रो रहे हो या सौ के लिए? बहू के सवाल से भूपेन्द्र सिंह बहुत शर्मिन्दा हुए और वे लोग जागे चल दिये।
थोड़ी देर बाद वे एक खेत के पास से गुजरे। भूपेन्द्र सिंह ने किसानों की ओर आवाज लगाकर कहा, ‘लगता है इस बार फसल अच्छी हुई है?’ बहू फिर बीच में बोल पड़ी, “ये लोग इस साल की फसल काट रहे हैं या पिछले साल की? यह सुनकर भूपेन्द्र सिंह ने अपने बेटे से कहा, ‘तुम्हारी पत्नी पागल हे। तुमने उसके बेवकूफी भरे सवाल को नहीं सुना?’
बेटे ने कहा, ‘उसके सवालों का अर्थ उसी से क्यो नहीं पूछते?’ बेटे की बात सुनकर उसने बहू से कहा, ‘मुझे बताओ इस सवाल का क्या अर्थ है, जब तुमने उस व्यक्ति से पूछा कि एक के लिए रो रहे हो या सौ के लिए?’ बहू ने कहा, ‘जब परिवार का ऐसा व्यक्ति मरता है, जिस पर कई लोग निर्भर होते हैं, तो ऐसे में उसके साथ कई जिन्दगियाँ खत्म हो जाती है। इसलिए मैंने पूछा था कि वे एक के लिए रो रहे हैं या सौ के लिए।’
भूपेन्द्र सिंह ने दूसरे सवाल का अर्थ पूछा, ‘मैं तो सिर्फ यह पूछना चाहती थी कि वे इस साल का कर्ज चुकाने के लिए फसल काट रहे हैं या फिर सारे कर्ज चुका चुके हैं।’ भूपेन्द्र सिंह को अब एहसास हो रहा था कि उसकी बहू मूर्ख नहीं बल्कि उससे कहीं ज्यादा समझदार है।
इसके बाद भूपेन्द्र सिंह ने कहा, ‘एक आखिरी सवाल। तुमने यह क्यों कहा कि मैंने तुम्हरी शादी में केवल एक बोरी चावल की कीमत के बराबर खर्चा किया, बहू ने हँसकर जवाब दिया, ‘शादी में लगने वाले जरूरी सामान के लिए जो पैसा लगा था, वह बहुत ही छोटी रकम थी। बाकी आपने जितना भी पैसा खर्च किया था, वह अपनी शान को ऊँचा बनाये रखने के लिए किया था। वह पैसा उपने शादी पर नहीं बल्कि अपने ऊपर खर्च किया था।’
मन का बल (Short moral stories in Hindi)
एक गाँव में भीम सिंह नामक व्यक्ति रहता था। जैसा उसका नाम, वैसा ही उसका डीलडौल। भीम सिंह के चर्चे बच्चे-बच्चे की जुबान पर रहते। इसलिए नहीं कि भीमसिंह बहुत बलशाली था बल्कि इसलिए कि भीम सिंह का दिल चूहे जैसा डरपोक था। कुश्ती के दंगल में आजतक उसे कोई पछाड़ नहीं पाया, क्योंकि उसने कोई कुश्ती लड़ी ही नहीं। वह इतनी जम कर वर्जिश करता कि अखाड़े की मिट्टी उसके पसीने से गीली हो जाती लेकिन बल को आजमाने की बारी आती तो उसका कलेजा काँपने लगता। आते-जाते लोग उस पर फब्तियाँ कसते।
एक दिन की बात है, भीम सिंह ने अपनी माँ से कहा, ‘मैं चक्की के भारी पाट को उठाकर इधर से उधर रख देता हूँ, दो सौ किले धान कन्धे पर उठा कर भण्डार में रख आता हूँ लेकिन फिर भी लोग मुझ पर हँसते क्यो हैं?’ माँ ने बेटे को सान्तवना देते हुए कहा, ‘भीमा! बल से ज्यादा मन का भरोसा होता है। तू अपना मन कच्चा मत कर।’ माँ की बात से भीम सिंह को दिलासा मिला या नहीं लेकिन मन में उधेड़बुन शुरू हो गयी।
घर से निकल कर चलता-चलता बाजार पहुँचा, तो देखा कि एक पगलाया बैल एक बूढ़े के प्राण लेने पर तुला है। सिंग बस वृद्ध की छाती में घुसने ही वाले थे कि भीम सिंह ने मन पक्का करके पलक झपकते बैल के सींग थाम लिये। मुस्टण्डे बैल ने लाख कोशिश की लेकिन भीम सिंह की मजबूत पकड़ से अपनी सींग नहीं छुड़ा पाया और थोड़ी देर में पस्त हो गया। पगलाये बैल को काबू में करने वाले भीम सिंह की वाह-वाह पूरे गाँव से उठने लगी। भीम सिंह को माँ की बात के मायने समझ में आ गयी। तन की मजबूती से ज्यादा मन की मजबूती है।
माया का मद (Short moral stories in Hindi)
एक गाँव में दो दोस्त रहते थे। मनकू जोर धनकू। दोनों ही परम मित्र थे। एक दुसरे के हित की सोचते। लोग उनकी मित्रता की दुहाई देते थे। एक दिन धनकू को चिन्ता हो गयी कि अगर मेरी मृत्यु हो गयी तो मेरा पैसा रिश्तेदार ले लेंगे और मेरे बच्चों का क्या होगा? बच्चे अभी छोटे थे। धनकू ने मनकू को बुलाया और कहा कि, “जीवन-निर्वाह जितना पैसा मेरी पत्नी के पास दुकान से आता रहता है, लेकिन मेरे बच्चों की शादी के लिए मैंने जो धन जमा किया है, मैं उसे खेत में गाड़कर छुपाना चाहता हूँ और तुम्हें उसका साक्षी बनना होगा। जब मेरे बच्चे जवान हो जायें तो ब्याह के लिए तुम वह जगह मेरी पत्नी को बता देना।’
मनकू ने दोस्त को सान्तवना देने के लिए उसकी बात मान ली। एक-दो साल बाद देवयोग से सचमुच धनकू का निधन हो गया। मनकू बहुत दु:खी हुआ। कई साल बाद धनकू की पत्नी ने मनकू को बुलाकर कहा, ‘बच्चे विवाह योग्य हो गये हैं। वे कहाँ धन गाड़ गये हैं, चलकर बता दो, तो मैं अपने कर्तव्य का निर्वाह करूँ।’ मनकू ने कहा, “हाँ, भौजाई खेत में इसी वक्त के लिए गाड़ा था, चलो ले लो।’
खेत में पहुंच कर खोदने के लिए धन की जगह पूछते ही मनकू कहने लगा, ‘मुझे क्या पता, जहाँ मर्जी हो खोद लो, में क्या तुम्हारा नौकर हूँ जो इतने सालों तक धन की रखवाली करता रहा। मनकू को ऐसे अनापशनाप बकते देखकर धनकू के बच्चों ने सोचा के काकाजी का मन बदल गया है। धनकू की माँ ने कहा, ‘बेटा! तुम वहीं खोदो जहाँ काकाजी खड़े हैं, माया का स्वभाव ही ऐसा है। इस जगह काकाजी नहीं, माया का मद बोल रहा है। यही सही जगह है।’ और खोदने पर गाड़ा हुआ धन मिल गया।
पैसे तो देते जाओं (Short moral stories in Hindi)
एक गाँव में नींदा नामक व्यक्ति रहता था। नींदा को नींद बहुत आती थी। किसी तरह उसकी पत्नी ने पीहर से पैसे लेकर उसे कपड़े की दुकान खुलवाई। नयी दुकान खोलकर नींदा बहुत उत्साहित था। पहले दिन दुकान में उसका बहुत अच्छी तरह से मन लग गया। कपड़ा बेचकर लखपति बनने के सपने आने लगे। दूसरे दिन नींदा दोपहर में खाना खाने घर आया, तो खाते ही आँख लग गयी और वह चद्दर ओढ़कर सो गया।
सपने में उसने देखा कि एक मोटा ग्राहक दस मीटर कपड़ा माँग रहा है। मोलभाव करने के बाद नींदा थान से कपड़ा फाड़ने को तैयार हो गया। मुँहमाँगें दाम पर सौदा तय होने के बाद नींदा नींद में ही थान फाड़ने लगा। इतने में आवाण सुनकर पत्नी जाग गयी, तो उसने देखा के पतिदेव ओढ़ने की चादर को “नौ…दस’ करते हुए फाड़ रहे हैं। उसने पति को झिंझोड़ा और बोली, ‘तुम्हारी क्या मति मारी गयी है, चादर क्यों फाड़ रहे हो?
नींदा ने नींद में पत्नी की आवाज सुनी, तो बोला, ‘हे भगवान! यह तो दुकान पर भी आ धमकी। अरे कर्कशा! तुझे दिखता नहीं क्या? ग्राहक देवता दुकान पर पधारे हैं। कपड़ा खरीद रहे हैं, इनको कपड़ा दूँ या पहले तेरे घर के लिए चादर दूँ। चल तू घर जा।’ इतना सुनने के बाद पत्नी ने जैसे-तैसे नींदा से चादर छीनी और उठकर जाने लगी कि पीछे से नींदा की बड़बड़ाहट आयी, “जा कहाँ रहे हो महाराज! पैसे तो देते जाओ।’
चतुराई का जवाब (Short moral stories in Hindi)
फसल अच्छी न होने के कारण एक किसान को गाँव के साहूकार से कुछ धन उधार लेना पड़ा। जब कर्जा चुकाने का समय समाप्त होने लगा, तो किसान थोड़ी और मोहलत माँगने साहूकार के पास गया। साहूकार बहुत चालाक था। उसकी नजर किसान की खूबसूरत बेटी पर थी। उसने किसान की मजबूरी देखते हुए सौदा करने की सोची। वह किसान से बोला, यदि तू अपनी देती की शादी मुझसे कर दे, तो मैं तेरा सारा कर्जा माफ कर दूँगा।’
यह सुनकर किसान ओर उसकी बेटी चिन्तित हो गये। उनकी हालत देखकर साहूकार ने कहा, ‘चल फैसला भगवान पर छोड़ देते हैं। मैं दो पत्थर उठाऊँगा एक काला और एक सफेद । उन दोनों को थैले में डाल दूँगा। तेरी बेटी उस थैले से पत्थर उठायेगी। यदि वह काला पत्थर उठाती हे, तो उसे मुझसे शादी करनी पड़ेगी और बदले में मैं तेरा सारा कर्जा माफ कर दूंगा। अगर वह सफेद पत्थर उठाती है, तो वह मुझसे शादी न करने के लिए आजाद है।
Hindi Stories for kids and students
लेकिन अगर वो पत्थर उठाने से मना करती हैं, तो तुझे जेल में डाल दिया जायेगा।’ अगले दिन गाँव के सभी लोग साहूकार और किसान के साथ एक निश्चित जगह पर इकट्ठे हो गये। जब साहूकार ने देखा कि लोगों का ध्यान उस पर नहीं है, तो उसेन चुपचाप दो काले पत्थर उठाकर थैले में डाल दिये। किसान की बेटी ने साहूकार की यह हरकत देख ली।
साहूकार ने किसान की बेटी को थैले में से एक पत्थर निकालने को कहा वह सोच में पड़ गयी कि अगर वह पत्थर उठाती है, तो थैले में सिर्फ काले पत्थर हैं। उसे साहूकार से शादी करनी ही पड़ेगी। किसान की बेटी ने दिमाग लगाया और थैले में से एक पत्थर निकाला। । हड़बड़ाहट में उसने वह पत्थर गिरा दिया। नीचे गिर कर वह अन्य पत्थरों में गुम हो गया।
किसान की बेटी ने कहा, ‘अरे मेरे हाथ से पत्थर छूट गया। लेकिन कोई बात नहीं। थैले में जो पत्थर है, उसे देखकर हम अन्दाजा लगा सकते हैं कि मैंने कौन-सा पत्थर उठाया था। जब लोगों ने थैले में देखा, तो उसमें काला पत्थर था। लोगों ने यहीं सोचा कि इसका मतलब किसान की बेटी ने सफेद पत्थर उठाया था। साहूकार चाहकर भी कुछ नहीं कर सका। यदि वह कुछ बोलता, तो उसकी बेईमानी पकड़ी जाती। इस तरह किसान की बेटी ने होशियारी से असंभव को सम्भव कर दिखाया।
आपके काम आयेगी खाट (Small short stories with moral values in Hindi)
किरपालू और उसकी बीवी धन्नो गाँव में खेती-बाड़ी करके अपना गुजारा करते थे। उन्होंने अपने बेटे मोहन को पढ़ने-लिखने के लिए शहर भेज दिया। वहाँ उसकी नौकरी लग गयी। शादी के बाद वह अपनी पत्नी और बेटे के साथ शहर में रहने लगा। उधर गाँव में जब किरपालू और उसकी पत्नी की तबियत खराब रहने लगी, तो उन्होंने सोचा, क्यों न बेटे के पास जाकर रहा जाये। अपनी खेती-बाड़ी बेचकर वे दोनों मोहन के साथ रहने लगे। मोहन किराये के मकान में रहता था, इसलिए उन्होंने अपने पैसों से मोहन के लिए मकान बनवा दिया।
दिन हँसी-खुशी गुजर रहे थे कि अचानक एक दिन धन्नो की तबियत खराब हो गयी और वह चल बसी। अब किरपालू अकेलापन महसूस करने लगा। उसके दु:ख में वह बीमार पड़ गया। मोहन दिन-रात पिता की सेवा में लगा रहता। बेटे की सेवा से खुश होकर किरपालू ने अपनी सारी जमा पूँजी मोहन को दे दी। बस, अब क्या था। मोहन और उसकी पत्नी के व्यवहार में अन्तर दिखायी देने लगा। उन्होंने किरपालू के लिए घर के बाहर एक टूटी हुई खाट डाल दी और ओढ़ने के लिए एक फटा-पुराना टाट दे दिया। मोहन का बेटा यह सब देख रहा था।
एक दिन किरपालू की मृत्यु हो गयी। दुनिया को दिखाने के लिए मोहन और उसकी पत्नी खूब रोये। कुछ दिने बाद जब मोहन उस टूटी हुई खाट को उठा रहा था, तो उसके बेटे ने पूछा, ‘पिताजी यह आप क्या कर रहे हैं? इसे कहाँ ले जा रहे हैं?” मोहन ने कहा, ‘बेटा, अब यह खराब हो गयी है। इसलिए में इसे फेंकने जा रहा हूँ।’ यह सुनकर मोहन का बेटा बोला, ‘इसे मत फेंकिए पिताजी। जब आप बूढ़े और बीमार हो जायेंगें, तब यह खाट आपके काम आयेगी।’ बेटे की बात सुनकर मोहन और उसकी पत्नी के होश उड़ गये और वे अपनी करनी पर पछताने लगें।
सुखिया और दुखिया (Short moral stories in Hindi)
दो भाई थे। सुखिया और दुखिया। जैसा उनका नाम, वैसा ही उनका स्वभाव और वैसा ही उनका व्यवहार। दोनों की झोपड़ियों के बीच एक बाड़ खिंची हुई थी। बाड़ से इस पार न कोई आता और ना कोई जाता। हर रोज शाम को दोनों के घर बैठक जमती। दुखिया के घर लोग अपने दु:खड़े रोने आते। कोई सन्तान से दु:खी था, तो कोई अपने भाई-भौजाई से। किसी के मवेशी खो गये थे, तो किसी का छप्पर टूट गया था। बताने के लिए हर किसी के पास कोई न कोई दु:ख था। छोटे दु:ख थे, बड़े दु:ख थे। दु:ख ही दु:ख थे। सभी के चेहरे लटके ओर मन उदास। दुखिया भी दु:खी और उसके पास आने वाले भी दु:खी।
उधर सुखिया के पास आने वालों के पास सुख के सन्देशे ही सन्देशे थे। किसी के पुत्र का विवाह था, तो किसी की गाय ने बछिया दी थी। कोई खूब कमा रहा था, तो कोई दान-पुण्य करके आया था। छोटे सुख से बड़े सुख। सुख ही सुख थे। इसके बावजूद दोनों ही तरफ एक असन्तुष्टि थी। दुखिया के पास आने वाले भी परेशान जोर सुखिया के पास आने वाले भी परेशान। एक के पास केवल दु:ख, दूसरे के पास केवल सुख की बातें। मन की कहे बिना किसी को चैन नहीं।
Moral stories in Hindi
एक दिन की बात। बीच में खिंची बाड़ को सुखिया के बच्चे लाँघ कर दुखिया की तरफ आ गये और दुखिया के बच्चों ने भी बाड़ लाँघी और सुखिया की ओर चले गये। एके रास्ता खुला और दोनों तरफ के लोग एक-दुसरे से हिले-मिले। सुखिया के साथियों ने दु:ख को जाना और दुखिया के साथियों ने सुख का अनुभव लिया। एक समरसता आयी और असन्तुष्टि मिटी। फिर सुखिया और दुखिया साथ रहने लगे।
ख्याली पुलाव (Short moral stories in Hindi)
देवीकोट नगर में देवराम नाम का एक भिखारी रहता था। एक बार किसी ने उसे सत्तुओं से भरा एक सकोरा दिया। उसे लेकर देवराम अपने घर की ओर चल दिया।
ज्येष्ठ-आषाढ़ की गरमी थी। नंगे पैर चलने से उसके पैर जल रहे थे, तो सूर्य उसके सिर पर आग बरसा रहा था। इसलिए उसने बचने के लिए आस-पास छाया के लिए निगाहें दौड़ायी। उसे एक कुम्हार का घर दिखायी दिया। मानो उसे डूबते को तिनके का सहारा मिल गया। कुम्हार के घर के पास ही मिट्टी के बर्तनों का एक भारी ढेर लगा हुआ था। विश्राम करने के लिए वह कुम्हार की कोठरी के समीप ही बैठ गया। सकोरे को एक ओर रखकर उसकी रक्षा के लिए डण्डा हाथ में लेकर बैठ गया।
बैठे-बैठे वह सोचने लगा कि यदि मैं सत्तुओं से भरे इस सकोरे को बेच दूँ, तो कम से कम दस कौड़ियाँ तो मुझे मिल ही जायेगी। फिर मैं उन कौड़ियों से इस कुम्हार से कुछ घड़े और सकोरे खरीद लूँगा। फिर उनको बेचकर जो रकम मिलेगी, उससे वस्त्र रवरीदूँगा और उनका व्यापार करुँगा। इस तरह एक दिन मैं लखपति बन जाऊँगा।
लखपति बनकर मैं एक-दो नहीं, अनेक नौकर-चाकर रखूँगा। उनमें से जो भी अपने काम में ढिलाई करेगा उसे डण्डे से इतना पीटूँगा कि उसे अपनी नानी याद आ जायेगी। इतना सोचकर ज्यों हो उसने अपना डंडा चलाया, उसके सकोरे के साथ-साथ कुम्हार के भी कई बर्तन फूट गये। बर्तनों के टूटने की आवाज सुनकर कुम्हार वहाँ आया। उसने जब अपने बर्तनों की हालत देखी, तो आग बबूला हो गया। उसने भिखारी को खरी-खोटी सुनायी। देवराम सोच रहा था कि वर्तमान को भूलकर कभी भी ख्याली पुलाव पकाकर प्रसन्न नहीं होना चाहिए।
समाधान (Short moral stories in Hindi)
रामसखा नाम का एक बुढ़ा व्यक्ति था। रूदृसकी दो बेटियाँ थीं- लता ओर सीता। लता का विवाह बर्तन बनाने वाले के साथ और सीता का विवाह एक किसान के साथ हुआ। एक दिन रामसखा को अपनी दोनों बेटियों की बहुत याद आयी। बेटियों से मिलने का निश्चय करके वह घर से चल पड़ा। वह पहले अपनी बड़ी बेटी लता के घर गया। उसने लता और उसके परिवार का हाल-चाल पूछा। बातों-बातों में उसकी बेटी बोली, ‘पिताजी! इस बार हमने बहुत मेहनत की है और ढेर सारे मिट्टी के बर्तन बनाये है। बस, इस बार वर्षा न हो, तो हमारी मेहनत सफल हो जाये।’ उसने रामसखा से आग्रह किया कि वह भी ईश्वर से वर्षा न होने की प्रार्थना करे।
कुछ देर बातें करने के बाद वह अपनी छोटी बेटी सीता के घर चल दिया। वहाँ पहुँचकर रामसखा ने उसका भी हालचाल पूछा। उसने कहा, “पिताजी! इस बार हमने बहुत परिश्रम किया है। यदि वर्षा अच्छी हो जायेगी, तो खूब फसल उगेगी।’ उसने पिता से विनती की कि वे ईश्वर से प्रार्थना करें कि इस बार खूब बारिश हो। अब रामसखा असमंजस की स्थिति में पड़ गया। उसे समझ नहीं आ रहा था कि आखिर वह किस बेटी के लिए प्रार्थना करे। वह सोचने लगा कि एक बेटी का आग्रह वर्षा न होने का है, तो दूसरी के साथ नाइनसाफी हो जाती है। मेरे लिए तो दोनों की मेहनत बराबर है।
इस उलझन से निकलने के लिए उसने एक समाधान निकाला। वह दोबारा अपनी बेटियों के घर गया। उसने अपनी बड़ी बेटी लता से कहा, यदि हस बार वर्षा नहीं हुई, तो तुम अपने लाभ का आधा हिस्सा अपनी छोटी बहन को दे दोगी, ताकि उसके नुकसान की कुछ हद तक भरपायी हो सके। लता ने अपने पिता की बात मानते हुए हाँ कर दी। फिर वह छोटी बेटी सीता के पास गया और उससे बोला, यदि इस बार वर्षा होती है, तो तुम्हारी बहन की मेहनत पर पानी फिर जायेगा। इसलिए मैं चाहता हूँ कि तुम अपने लाभ का आधा हिस्सा अपनी बड़ी बहन को दो। उसने भी हाँ कर दी। इस प्रकार रामसखा ने बिना भेद-भाव किये मुश्किल का समाधान निकाल लिया।
जो होगा अच्छा होगा (All is Well Short Hindi Story)
किसी गाँव में हीरा नामक किसान रहता था। उसके पास एक घाड़ा था। एक दिन वह घोड़ा रस्सी तोड़कर भाग गया। यह खबर सुनकर किसान के पड़ोसी उसके घर आये। उन्होंने इस घटना पर अफसोस जाहिर किया। किसान ने कहा, ‘अफसोस की कोई बात नहीं है। जो होता है अच्छे के लिए होता है।’ अगले दिन किसान का घोड़ा वापस आ गया ओर अपने साथ तीन घोड़े और ले आया।
एक दिन हीरा का बेटा एक जंगली घोड़े पर सवार होने की कोशिश कर रहा था। इसी प्रयास में वह गिर गया और उसके पैर में बहुत गहरी चोट आयी। लोगों ने इस घटना पर फिर अफसोस जताया। हीरा ने कहा, ‘इसमें भी जरूर कुछ अदृछा छुपा होगा। अगली सुबह गाँव में घोषणा कर दी गयी कि गाँव के सभी युवकों को राजा की सेना में भर्ती होना जरूरी हैं। अत: गाँव के सभी युवाओं को जबरदस्ती सैन्य अभ्यास के लिए ले जाया गया। लेकिन हीरा के बेटे को उसकी चोट के कारण छोड़ दिया गया। तब हीरा के मुँह से यही निकला, जो होता है अच्छे के लिए होता है। इसलिए हर व्यक्ति को दु:ख और सुख दोनों स्थिति में यही मानकर चलना चाहिए कि जीवन में जो कुछ भी होता हैं, उसमें कुछ भलाई छिपी होती है।
अधूरा सच (Half Truth Short Hindi Story)
इकराम नामक एक नाविक जहाज पर लम्बे समय से काम कर रहा था। इस दौरान उसने ऐसा कोई काम नहीं किया, जो अनैतिक हो। एक रात उसने अपने साथियों के उकसाने पर नशा कर लिया। नशे में जहाज को सम्भाल पाना उसके लिए मुश्किल हो गया था। जहाज को डोलता देख कैप्टन नाविक इकराम के पास पहुँचा। उसने देखा इकराम नशे में धुत्त था। उसने अपनी लॉंग बुक में लिखा, ‘इकराम ने नशा कर रखा है।’
दूसरे दिन जब इकराम को होश आया, तो वह अपनी करनी पर बहुत पछताया और कैप्टन से माफी माँगने लगा। उसने कहा, ‘आपने जो कुछ भी मेरे बारे में अपनी लॉंग बुक में लिखा है, उससे मेरी सालों की छवि धूमिल हो जायेगी। मैंने आज तक कोई गलत काम नहीं किया। क्या मेरी एक गलती नजरअन्दाज नहीं की जा सकती?’ कैप्टन ने उससे कहा, ‘माना कि ऐसा पहली बार हुआ है, लेकिन मैंने भी झूठ नहीं लिखा है। नशा तो तुमने किया ही था। इसकी वजह से कोई हादसा हो सकता था।’
कुछ दिन बाद इकराम को जहाज का मुआयना करने की डयूटी दी गयी। चूँकि कैप्टन रोज नशा करता था लेकिन उस दिन नहीं किया था। उसे देखकर इकराम ने लॉंग बुक में लिखा, ‘आज कैप्टन नशे में नहीं है।’ कैप्टन ने जो बात इकराम के लिए लॉंग बुक में लिखी थी, उसका अर्थ था कि इकराम रोज नशा नहीं करता लेकिन उसने आज नशा कर रखा है। और जो बात इकराम ने लॉंग बुक में लिखी थी उसका मतलब था कैप्टन रोज नशा करता है लेकिन आज नहीं किया। दोनों की बात सच थी लेकिन अधूरी। इसीलिए कहा गया से कि पूरी सच्चाई जानो। अधूरा सच किसी और निष्कर्ष पर ले जाता से।
साकार हुआ सपना (Dream Short Hindi Story)
एक लड़का था कुन्दन। उसके पीता एक अस्तबल में काम करते थे। कुन्दन अक्सर अपने पिता को घोड़ों की देखभाल करते देखा। जबकि अस्तबल का मालिक आराम की जिन्दगी जीता था। पिता को दिन-रात मेहनत करते देख उसने सपना देखा की एक दिन उसका भी बहुत बड़ा अस्तबल होगा। जिसके मालिक उसके पीता होंगे।
एक दिन कुन्दन को स्कूल की परीक्षा में निबन्ध लिखने को दिया गया। विषय था- आप बड़े होकर क्या बनना चाहते हो? कुन्दन ने लिखा, “मैं बड़ा होकर एक अस्तबल का मालिक बनना चाहता हूँ। ‘
उसके शिक्षक ने निबन्ध पढ़कर कहा, ‘यह सपना तो मनगढ़न्त लगता है। तुम्हें वडी लिखना चाहिए था, जो तुम वाकई बनना चाहते हो।’ कुन्दन ने कहा, ‘मैंने सही लिखा है और यहीं मेरा सपना है।’ शिक्षक ने कहा, ‘अस्तबल बनाना इतना आसान नहीं है। अपने पिता से पूछना अस्तबल बनाने में कितना धन चाहिए। मैं तुम्हें एक मौका और दे सकता हूँ। ऐसा निबन्ध लिखो, जिसमें सच्चाई हो। वरना परीक्षा में अनुत्तीर्ण हो जाओगे।’ कुन्दन ने दोबारा निबन्ध लिखना शुरू किया। लेकिन उसका मन नहीं माना। वह शिक्षक की खुशी के लिए झूठ नहीं लिख सकता था।
उसने पुराना वाला निबन्ध शिक्षक को लौटा दिया और कहा, ‘अब आप चाहें, तो मुझे अनुत्तीर्ण कर सकते है। मैं अपना सपना कायम रखूँगा।’ बीस साल बाद शिक्षक को अन्तर्राष्ट्रीय घुड़दौड़ देखने को निमन्त्रण मिला। जब दौड़ खत्म हुई, तो एक व्यक्ति ने आकर शिक्षक के पैर छुए और अपना परिचय दिया, तो आश्चर्य से शिक्षक की आँखे खुली रह गयी। वह व्यक्ति, वडी छोटा लड़का कुन्दन था। आज शिक्षक को विश्वास हो गया कि सालों पहले लिखा कुन्दन का सपना मनगढ़न्त नहीं था। इसीलिए हमेशा अपने दिल की सुनो। खुली आँख से सपना देखने वालों के ही सपने पूरे होते है।
मित्रता (Dosti ak Short Hindi Kahani)
एक लड़की थी गौरी। वह जन्म से ही नेत्रहीन थी। उसका मन करता था कि वह दुनिया को अपनी आँखों से देखे। प्रकृति के खूबसूरत नजारों का आनन्द ले। लेकिन ऐसा करना उसके लिए सम्भव नहीं था। उसका एक मित्र था शानु। वह मन ही मन गौरी से प्रेम करता था। लेकिन उसने अपने मन की बात कभी गौरी से नहीं कही। वह डरता था कि कहीं गौरी यह न समझ बैठे कि वह उसकी नेत्रहीनता पर तरस खा रहा है। शानु उसे दु:खी नहीं देखना चाहता था, इसलिए मन की बात मन में ही रखी। यह उसकी खूब देखभाल करता। उसे कभी एहसास नहीं होने देता कि वह नेत्रहीन है। गौरी भी उसकी मित्रता से खुश थी। एक दिन गौरी ने शानु से कहा, ‘यदि किसी दिन मैं अपनी आँखों से देख पायी, तो ने तुन्हीं से विवाह करूँगी। मुझसे विवाह करोगे ना?’ शानु ने अपनी स्वीकृति दे दी।
वक्त गुजरता रहा एक दिन शानु ने कहा, ‘गौरी मैं तुम्हारी आँखे ठीक करवाना चाहता हूँ। एक व्यक्ति ने नेत्रदान किया है, जिसकी आँखे तुम्हें लगायी जा सकती हैं।’ यह सुनकर गौरी बहुत खुश हुई। कुछ दिन बाद शानु उसे शहर ले गया और उसकी आँखों का ऑपरेशन करवा दिया। जब गौरी की आँखों से पट्टियाँ उतारी गयीं, तो वह सब कुछ देख सकती थी। खुशी के मारे उसके पाँव जमीन पर नहीं पड़ रहे थे। उसने शानु को देखने की इदृछा जताई। शानु ने गौरी के सामने आकर उससे पूछा, ‘अब तुम देख सकती हो। क्या तुम मुझसे शादी करोगी? गौरी ने देखा, शानु तो नेत्रहीन है। उसे जिन्दगी भर एक नेत्रहीन के साथ रहना पड़ेगा। यह सोचकर उसने शादी से इनकार कर दिया।
गौरी का जवाब पाकर शानु की आँखों में आँसू आ गये। जाते समय उसने गौरी के हाथ में एक कागज थमाया। उसमें लिखा था, हमेशा खुश रहना और मेरी आँखों का ख्याल रखना।
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