Short stories for kids in Hindi: दोस्तों आज हम बच्चो के लिए कुछ इंटरेस्टिंग कहानियाँ लेकर आये है Short stories for kids in Hindi निचे कुछ कहानिया है जो आपको पढ़ने में मजेदार लगेगी। ये Short कहानिया आपको आपके क्लास होम वर्क में भी बहुत मदद करेंगी Short stories for kids in Hindi
प्रजा की बोली
राजा शुद्धोधन के एक सुपुत्र था, प्रसन्नजीत। प्रसन्नजीत बड़ा ही आज्ञाकारी था। पिता के कहे को पत्थर की लकीर मानने वाला। एक बार राजा ने युवा होते अपने पुत्र से कहा, पुत्र मैं चाहता हूँ कि तुम प्रजा के बीच अपनी पहचान छुपकर रहो।
तुम्हें अपनी चाल-ढाल से लेकर हावभाव सब साधारण नागरिकों जैसे रखने हैं। ऐसा तुम्हें कई सालों तक करना है। मैं चाहता हूँ कि तुम प्रजा की बोली भी सीखो। बोली सीखने के लिए प्रजा के बीच रहने की बात प्रसन्नजीत को समझ में नहीं आयी, लेकिन पिता का कहा टालने का तो प्रश्न ही नहीं था।
प्रसन्नजीत को प्रजा के बीच साधारण वेश में रहते कई साल हो गये। एक दिण प्रसन्नजीत राजमहल आया तो उसकी वेशभूषा और भाषा-ओली से द्वारपाल भी धोखा खा गये। किसी तरह उसकी अपने पिता से मुलाकात सम्भव हुई। राजा ने उसे गले से लगा लिया।
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10 Short stories for kids in Hindi
अपने लक्ष्य में सफल होने के बाद प्रसन्नजीत ने अपने पिता से क्षमायाचना सहित यह सवाल किया कि आखिर क्यों जनता की बोली सीखने के लिए उसे इतने सालों तक जनता के बीच रहना पड़ा, जबकि यह काम तो उसके लिए कोई शिक्षक भी कर सकता था।
शुद्धोधान ने जवाब दिया, प्रजा की बोली भले ही तुम्हें राजमहल में कोई शिक्षक सिखा देता लेकिन इस बोली में अभिव्यक्त होते प्रजा के सुख-दु:ख को तुम तब तक महसूस नहीं कर पाते, जब तक तुमने उनके बीच रहना नहीं सीखा होता।
अब तुम सही मायने में प्रजा की बोली सीख गये हो। अगले ही दिन प्रसन्नजीत का राजतिलक कर दिया गया। प्रजा उसके राज में बहुत सुखी थी।
किसी से नहीं कहना
गाँव में एक स्त्री थी। नाम था रामप्यारी। रामप्यारी बड़ी वाचाल औरत थी। उसके पाँवों में चक्कर लगा हुआ था। अपने घर में तो वह टिकती ही नहीं थी। जब तक वह इस घर की बातें उस घर को नहीं बता देती, खाना उसके पेट में हजम नहीं होता था।
उसका हर वाक्य इन शब्दों के साथ शुरू होता, लोग कह रहे थे. .. या मैंने तो सुना है… आखिर में वह यह कहना नहीं भूलती, …किसी से नहीं कहना। नमक-मिर्च लगाकर वह बात को कहाँ से कहाँ पहुंचा देती। एक दिन ऐसे ही वह पड़ोसी के घर पहुँच गयी।
उस घर में नयी नयी शादी हुई थी। उसने नयी बहू से कहा, सुना है कि तुम घर के काम ठीक से नहीं जानती। बहू से सपकपाते हुए पूछा, आपने किससे सुना है। रामप्यारी ने कहा तुम्हारी सास किसी से कह रही थी, लेकिन तुम किसी से कहना नहीं कि मैंने तुम्हें यह बात बतायी हैं।
नयी बहू बड़ी चतुर थी, वह समझ गयी कि उसकी सास तो बहुत सीधे स्वभाव की है। रामप्यारी सास-बहू में झगड़ा करवाने में तुली है। उसने रामप्यारी से कहा, मैंने सुना है कि गाँव में एक औरत है, जो हर किसी का झगड़ा करवाने पर तुली रहती है। अब सकपकाने की बारी रामप्यारी की थी। लोग कह रहे थे कि उस औरत का नाम रामप्यारी है। नयी बहू आगे बोली।
रामप्यारी के मुँह से कोई बोल नहीं फूटा। उसने चुपचाप वहाँ से खिसक जाने में ही भलाई समझी। जाते-जाते उसने सुना, पीछे से नई बहू कह रही थी, मैंने तो आपसे कह दी है लेकिन आप किसी से नहीं कहना…रामप्यारी ने जाते-जाते कहा, नहीं बहू मैं किसी से नहीं कहूँगी लेकिन तुम भी रामप्यारी की बात किसी से नहीं कहना। उस दिन के बाद से रामप्यारी सचमुच सुधर गयी।
राँका और बाँका
राँका और बाँका ईश्वर-परायण दम्पति थे। वे ईश्वर के बड़े भक्त थे। सादगी और सरलता से अपना जीवनयापन करते थे। वे लोभ लालच और आसक्ति से ऊपर उठे हुए थे। एक बार विधाता ने उनकी परीक्षा लेने की ठानी। एक दिन वे दोनों जंगल में लकड़ी लेने के लिए जा रहे थे। पति आगे चल रहा था ओर पत्नी पीछे चल रही धी। रास्ते में मिट्टी के ढेर पर राँका को ठोकर लगी। उसने देखा-मिट्टी के ढेर से सोने की मोहरों से भरी एक थैली बाहर आकर पड़ी है।
थैली खुल गयी। चारों और सोना ही सोना बिखर गया। चमचमाते सोने को देखकर राँका जल्दी से धूल डाल कर उसे ढँकने में लगा। इतने में बाँका आ पहुँची। उसने पति से पूछा, आप क्या कर रहे हैं? राँका ने पहले तो कुछ नहीं बताया। पर ज्यादा जिद करने पर उसे कहना पड़ा, सोने की मोहरें थीं। मैंने समझा, इन पर कहीं तुम्हारा मन न चल जाये, इसलिए इन्हें धूल डालकर ढँक रहा था।
बाँका ने हँस कर कहा, वाह, धुल डालने से क्या लाभ हैं? मैं तो सोने को पीली मिट्टी से ज्यादा महत्व नहीं देती। आप अभी तक इस पीली मिट्टी को सोना मानते हो। मिट्टी चाहे काली ही या पीली, मिट्टी तो मिट्टी ही होती है। इसलिए मिट्टी पर मिट्टी डालने से क्या फायदा। राँका समझ चुका था कि उसकी पत्नी लोभ लालच से बहुत दूर है।
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