10+ Best Small short stories with moral values in hindi

Small short stories with moral values in hindi: दोस्तों आज हम बच्चो के लिए कुछ इंटरेस्टिंग कहानियाँ लेकर आये है। Small short stories with moral values in Hindi निचे कुछ कहानिया है जो आपको पढ़ने में मजेदार लगेगी। ये Short moral stories in Hindi कहानियाँ आपको आपके क्लास होम वर्क में भी बहुत मदद करेंगी।

मेहनत की कमाई – Small short stories with moral values in hindi

एक गाँव में बिरजू नाम का किसान रहता था। दिन-रात मेहनत करके वह दो वक्स की रोटी कमा पाता था। उसके घर में उसकी पत्नी और एक बेटा बजरंग था। बजरंग को पैसों की कीमत पता नहीं थी। बिरजू की पत्नी उससे छिपाकर बजरंग को पैसे देती रहती। बिरजू ने कई बार अपनी पत्नी को समझाया भी लेकिन उसकी समझ में कुछ नहीं आया। अब किसान बूढ़ा हो चला था और चाहता था कि उसका बेटा बजरंग खेती करने में उलका हाथ बटाये, लेकिन बजरंग को इसमें कोई रुचि नहीं थी।

एक दिन बिरजू ने अपने बेटे से कहा, तू अपनी मेहनत से पैसे कमा ताकि मुझे भी तुझ पर गर्व हो। बजरंग ने सोचा इसमें कौन-सी बड़ी बात है। उसने अपने दोस्त के घर से एक रुपया चुराया और शाम को बिरजू के हाथ में रख दिया। बिरजू ने उस सिक्के को भट्टी में फेंक दिया। यह सब देखकर बजरंग कुछ नहीं बोला।

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दूसरे दिन बजरंग ने अपनी माँ से पैसे लिये और पिता को दे दिये। बिरजू ने उन सिक्कों को भी भट्टी में फेंक दिया। बजरंग समझ नहीं पा रहा था कि आखिर बापू को कैसे पता चल जाता है कि ये पैसे उसने नहीं कमाये।

अगले दिन उसने खुद मेहनत करके पैसे कमाने की सोची। दिनभर काम करने के बाद उसे जो पैसे मिले, वो उसने शाम को पिता के हाथों में रख दिये। जैसे ठी बिरजू उन्हें भट्टी में फेंकने लगा, बजरंग ने उसका हाथ पकड़ लिया और कहा, बापु, ये मेरी मेहनत की कमाई है। इसे भट्टी में क्यों फेंक रहे हो? यह देख बिरजू ने कहा, बेटा, आज तूने सबक सीखा है कि पैसा कितनी मेहनत से आता है। उसे खर्च करना आसान है, लेकिन कमाना बहुत मुश्किल है। यह सुनकर बजरंग की आँखे भर आयीं और उसने फिजूलखर्ची बन्द करके खेती में अपने पिता का हाथ बटाना शुरू कर दिया।

समझदार बहू

भूपेन्द्र सिंह ने अपने इकलौते बेटे की शादी खूब धूमधाम से की। एक दिन उसने अपनी बहू की बुद्धिमानी की परीक्षा लेने की सोची। उसने अपनी बहू से पूछा, क्या तुम बता सकती हो कि मैंने तुम्हारी शादी में कितना खर्चा किया? बहू ने जवाब दिया, ‘एक चावल की बोरी की कीमत के बराबर।

भूपेन्द्र सिंह का मुँह आश्चर्य से खुला रह गया। कुछ दिनों बाद भूपेन्द्र सिंह अपने परिवार के साथ एक रिश्तेदार के यहाँ शादी में जा रहा थे। रास्ते में उन्होंने एक शवयात्रा देखी एक व्यक्ति को रोककर उसने पूछा, किसकी मृत्यु हुई है? तभी बहू बोल पड़ी, तुम लोग केवल एक व्यक्ति के लिए रो रहे हो या सौ के लिए? बहू के सवाल से भूपेन्द्र सिंह बहुत शर्मिन्दा हुए और वे लोग जागे चल दिये।

थोड़ी देर बाद वे एक खेत के पास से गुजरे। भूपेन्द्र सिंह ने किसानों की ओर आवाज लगाकर कहा, लगता है इस बार फसल अच्छी हुई है? बहू फिर बीच में बोल पड़ी, ये लोग इस साल की फसल काट रहे हैं या पिछले साल की? यह सुनकर भूपेन्द्र सिंह ने अपने बेटे से कहा, तुम्हारी पत्नी पागल हे। तुमने उसके बेवकूफी भरे सवाल को नहीं सुना?

बेटे ने कहा, उसके सवालों का अर्थ उसी से क्यो नहीं पूछते? बेटे की बात सुनकर उसने बहू से कहा, मुझे बताओ इस सवाल का क्या अर्थ है, जब तुमने उस व्यक्ति से पूछा कि एक के लिए रो रहे हो या सौ के लिए? बहू ने कहा, जब परिवार का ऐसा व्यक्ति मरता है, जिस पर कई लोग निर्भर होते हैं, तो ऐसे में उसके साथ कई जिन्दगियाँ खत्म हो जाती है। इसलिए मैंने पूछा था कि वे एक के लिए रो रहे हैं या सौ के लिए।

भूपेन्द्र सिंह ने दूसरे सवाल का अर्थ पूछा, मैं तो सिर्फ यह पूछना चाहती थी कि वे इस साल का कर्ज चुकाने के लिए फसल काट रहे हैं या फिर सारे कर्ज चुका चुके हैं। भूपेन्द्र सिंह को अब एहसास हो रहा था कि उसकी बहू मूर्ख नहीं बल्कि उससे कहीं ज्यादा समझदार है।

इसके बाद भूपेन्द्र सिंह ने कहा, एक आखिरी सवाल। तुमने यह क्यों कहा कि मैंने तुम्हरी शादी में केवल एक बोरी चावल की कीमत के बराबर खर्चा किया, बहू ने हँसकर जवाब दिया, शादी में लगने वाले जरूरी सामान के लिए जो पैसा लगा था, वह बहुत ही छोटी रकम थी। बाकी आपने जितना भी पैसा खर्च किया था, वह अपनी शान को ऊँचा बनाये रखने के लिए किया था। वह पैसा उपने शादी पर नहीं बल्कि अपने ऊपर खर्च किया था।

मन का बल

एक गाँव में भीम सिंह नामक व्यक्ति रहता था। जैसा उसका नाम, वैसा ही उसका डीलडौल। भीम सिंह के चर्चे बच्चे-बच्चे की जुबान पर रहते। इसलिए नहीं कि भीमसिंह बहुत बलशाली था बल्कि इसलिए कि भीम सिंह का दिल चूहे जैसा डरपोक था।

कुश्ती के दंगल में आजतक उसे कोई पछाड़ नहीं पाया, क्योंकि उसने कोई कुश्ती लड़ी ही नहीं। वह इतनी जम कर वर्जिश करता कि अखाड़े की मिट्टी उसके पसीने से गीली हो जाती लेकिन बल को आजमाने की बारी आती तो उसका कलेजा काँपने लगता। आते-जाते लोग उस पर फब्तियाँ कसते।

एक दिन की बात है, भीम सिंह ने अपनी माँ से कहा, मैं चक्की के भारी पाट को उठाकर इधर से उधर रख देता हूँ, दो सौ किले धान कन्धे पर उठा कर भण्डार में रख आता हूँ लेकिन फिर भी लोग मुझ पर हँसते क्यो हैं? माँ ने बेटे को सान्तवना देते हुए कहा, भीमा! बल से ज्यादा मन का भरोसा होता है। तू अपना मन कच्चा मत कर। माँ की बात से भीम सिंह को दिलासा मिला या नहीं लेकिन मन में उधेड़बुन शुरू हो गयी।

घर से निकल कर चलता-चलता बाजार पहुँचा, तो देखा कि एक पगलाया बैल एक बूढ़े के प्राण लेने पर तुला है। सिंग बस वृद्ध की छाती में घुसने ही वाले थे कि भीम सिंह ने मन पक्का करके पलक झपकते बैल के सींग थाम लिये।

मुस्टण्डे बैल ने लाख कोशिश की लेकिन भीम सिंह की मजबूत पकड़ से अपनी सींग नहीं छुड़ा पाया और थोड़ी देर में पस्त हो गया। पगलाये बैल को काबू में करने वाले भीम सिंह की वाह-वाह पूरे गाँव से उठने लगी। भीम सिंह को माँ की बात के मायने समझ में आ गयी। तन की मजबूती से ज्यादा मन की मजबूती है।

माया का मद

एक गाँव में दो दोस्त रहते थे। मनकू जोर धनकू। दोनों ही परम मित्र थे। एक दुसरे के हित की सोचते। लोग उनकी मित्रता की दुहाई देते थे। एक दिन धनकू को चिन्ता हो गयी कि अगर मेरी मृत्यु हो गयी तो मेरा पैसा रिश्तेदार ले लेंगे और मेरे बच्चों का क्या होगा? बच्चे अभी छोटे थे।

धनकू ने मनकू को बुलाया और कहा कि, जीवन-निर्वाह जितना पैसा मेरी पत्नी के पास दुकान से आता रहता है, लेकिन मेरे बच्चों की शादी के लिए मैंने जो धन जमा किया है, मैं उसे खेत में गाड़कर छुपाना चाहता हूँ और तुम्हें उसका साक्षी बनना होगा। जब मेरे बच्चे जवान हो जायें तो ब्याह के लिए तुम वह जगह मेरी पत्नी को बता देना।

मनकू ने दोस्त को सान्तवना देने के लिए उसकी बात मान ली। एक-दो साल बाद देवयोग से सचमुच धनकू का निधन हो गया। मनकू बहुत दु:खी हुआ। कई साल बाद धनकू की पत्नी ने मनकू को बुलाकर कहा, बच्चे विवाह योग्य हो गये हैं। वे कहाँ धन गाड़ गये हैं, चलकर बता दो, तो मैं अपने कर्तव्य का निर्वाह करूँ। मनकू ने कहा, हाँ, भौजाई खेत में इसी वक्त के लिए गाड़ा था, चलो ले लो।

खेत में पहुंच कर खोदने के लिए धन की जगह पूछते ही मनकू कहने लगा, मुझे क्या पता, जहाँ मर्जी हो खोद लो, में क्या तुम्हारा नौकर हूँ जो इतने सालों तक धन की रखवाली करता रहा। मनकू को ऐसे अनापशनाप बकते देखकर धनकू के बच्चों ने सोचा के काकाजी का मन बदल गया है। धनकू की माँ ने कहा, बेटा! तुम वहीं खोदो जहाँ काकाजी खड़े हैं, माया का स्वभाव ही ऐसा है। इस जगह काकाजी नहीं, माया का मद बोल रहा है। यही सही जगह है। और खोदने पर गाड़ा हुआ धन मिल गया।

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