चाणक्य के बारे में रोचक तथ्य

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चाणक्य के बारे में रोचक तथ्य: जन्म के समय से ही चाणक्य के मुँह में पूरे दाँत थे। यह राजा या सम्राट बनने की निशानी थी।

लेकिन चूँकि उनका जन्म ब्राह्मण परिवार में हुआ था, इसलिए यह बात सच नहीं हो सकती थी। इसलिए उनके दाँत उखाड़ दिए गए और यह भविष्यवाणी की गई कि वे किसी और व्यक्ति को राजा बनवाएँगे और उसके माध्यम से शासन करेंगे।

चाणक्य के बारे में रोचक तथ्य

कम उम्र में जब बच्चे बोलना भी ठीक से शुरू नहीं कर पाते, चाणक्य ने वदो का अध्ययन करना शुरू कर दिया था।

चाणक्य बहुत कम उम्र में ही ये समझ गए की विरोधियों के खेमे में अपने लोग कैसे शामिल किये जाए और उनकी जासूसी की जाये।

चाणक्य में जन्मजात नेतृत्व के गुण मौजूद थे। वे अपने हम उम्र साथियों से कहीं अधिक बुद्धिमान और तार्किक थे।

चाणक्य कटु सत्य को कहने से भी नहीं चूकते थे। इसी कारण पाटलिपुत्र के राजा घनानंद ने उन्हें अपने दरबार से बाहर निकाल दिया था। तभी चाणक्य ने प्रतिज्ञा की थी कि वे नंद वंश का समूल नाश कर देंगे।

चाणक्य ने चाणक्य निति, नितिशास्त्र और अर्थशास्त्र जैसे महान ग्रंथो की रचना की है।

चाणक्य के पिता का नाम चणक मुनि था जो एक शिक्षक थे, इसलिए शिक्षा का महत्व वे अच्छी तरह से समझते थे। अपने पुत्र को उन्होंने अच्छी शिक्षा प्रदान की।

तक्षशिला (अब पाकिस्तान में) उन दिनों भारत के उच्च शिक्षा-संस्थानों में से एक था, जहाँ चाणक्य ने प्रायोगिक व प्रयोगात्मक ज्ञान हासिल किया। वहाँ के शिक्षक उच्च कोटि के विद्वान होते थे, जो प्रायोगिक व प्रयोगात्मक रूप से छात्रों को शिक्षित करते थे। वहाँ विज्ञान, आयुर्वेद, दर्शन, व्याकरण, गणित, अर्थशास्त्र, ज्योतिष विद्या, भूगोल, खगोल-शास्त्र, कृषि विज्ञान, औषध विज्ञान आदि की शिक्षा प्रदान की जाती थी।

विद्यार्थी जीवन में चाणक्य की लोकप्रियता का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि लोग उन्हें कौटिल्य और विष्णुगुप्त आदि अनेक नामों से भी पुकारते थे।

तक्षशिला में शिक्षा समाप्त करके चाणक्य वहीं शिक्षक के रूप में कार्य करने लगे। वे विद्यार्थियों के आदर्श थे। उनके एक आदेश पर विद्यार्थी सबकुछ करने को तैयार हो जाते थे।

सिकंदर की युद्ध निति का चाणक्य ने गहन अध्ययन किया था साथ ही वे भारतीय शासकों की कमजोरियों के प्रति भी सचेत थे।

चाणक्य के बारे में रोचक जानकारी

अपने लक्ष्य को पूरा करने के लिए चाणक्य ने बालक चंद्रगुप्त को चुना, क्योंकि उसमें जन्म से ही राजा बनने के सभी गुण मौजूद थे।

चंद्रगुप्त के कई शत्रु थे। राजा नंद भी उनमें शामिल था। उसने चंद्रगुप्त को कई बार जहर देकर मारने की कोशिश की। अतः चंद्रगुप्त की जहर-प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने के लिए चाणक्य ने उसे भोजन में थोड़ा-थोड़ा जहर मिलाकर देना आरंभ कर दिया।

चंद्रगुप्त को भोजन में जहर दिए जाने की बात पता नहीं थी, इसलिए एक दिन उसने अपने भोजन में से थोड़ा सा भोजन अपनी पत्नी को भी दे दिया, जो नौ माह की गर्भवती थी।
जहर की तीव्रता वह नहीं झेल पाई और काल-कवलित हो गई। लेकिन चाणक्य ने उसका पेट चीरकर नवजात शिशु को बचा लिया।

वह शिशु बड़ा होकर एक योग्य सम्राट बिंदुसार बना। उसका सुबंधु नाम का एक मंत्री था।

सुबंधु चाणक्य को फूटी आँखें पसंद नहीं करता था। उसने बिंदुसार के कान भरने शुरू कर दिए कि चाणक्य उसकी माता का हत्यारा है।

तथ्य को जाँचे-परखे बगैर वह चाणक्य के विरुद्ध खड़ा हो गया। लेकिन जब उसे सचाई पता हुई तो वह बहुत शर्मिंदा हुआ और अपने दुर्व्यवहार के लिए उसने चाणक्य से क्षमा माँगी। उसने सुबंधु से भी कहा कि जाकर चाणक्य से क्षमा माँगे।

सुबंधु बड़ा कुटिल व्यक्ति था। चाणक्य से क्षमा माँगने का बहाना करते हुए उसने धोखे से उनकी हत्या कर दी। इस प्रकार राजनीतिक षड्यंत्र के चलते एक महान् व्यक्ति के जीवन का अंत हो गया।

आज जो भारत में पटना शहर है उसे चाणक्य के काल में पाटलिपुत्र कहा जाता था और इसका इतिहास राजनीतिक रूप से बहुत महत्वपूर्ण रहा है। दिल्ली की तरह यह भी कई बार बसा और उजड़ा है।

चीन के जाने-माने यात्री फाह्यान ने 399 ई.पू. में पाटलिपुत्र की यात्रा की थी और इसे एक संपन्न व सांस्कृतिक संसाधनों से भरपूर नगर कहा था। उसी समय एक दूसरे चीनी यात्री ह्वेनसांग ने इसका वर्णन रोड़े, पत्थर और ध्वंसावशेष के नगर के रूप में किया था।

शिशुनागवंशी ने गंगा के दक्षिणी किनारे पर पाटलिपुत्र (पटना) की स्थापना की थी। समय-समय पर इसके नाम बदलते रहे। इसे पुष्पपुर, पुष्पनगर, कुसुमपुर, पाटलिपुत्र और अब पटना कहा जाता है।

चाणक्य की तर्क करने की सकती:

एक दिन चाणक्य का एक परिचित उनके पास आया और उत्साह से कहने लगा, आप जानते हैं, अभी-अभी मैंने आपके मित्र के बारे में क्या सुना?

चाणक्य अपनी तर्क-शक्ति, ज्ञान और व्यवहार-कुशलता के लिए विख्यात थे। उन्होंने अपने परिचित से कहा, आपकी बात मैं सुनूँ, इसके पहले मैं चाहूँगा कि आप त्रिगुण परीक्षण से गुजरें।

उस परिचित ने पूछा, यह त्रिगुण परीक्षण क्या है?

चाणक्य ने समझाया, आप मुझे मेरे मित्र के बारे में बताएँ, इससे पहले अच्छा यह होगा कि जो कहें, उसे थोड़ा परख लें, थोड़ा छान लें। इसीलिए मैं इस प्रक्रिया को त्रिगुण परीक्षण कहता हूँ। इसकी पहली कसौटी है

सत्य:- इस कसौटी के अनुसार जानना जरूरी है कि जो आप कहने वाले हैं, वह सत्य है। आप खुद उसके बारे में अच्छी तरह जानते हैं?
नहीं। वह आदमी बोला, वास्तव में मैंने इसे कहीं सुना था, खुद देखा या अनुभव नहीं किया था।

ठीक है। चाणक्य ने कहा, आपको पता नहीं है कि यह बात सत्य है या असत्य। दूसरी कसौटी है
अच्छाई:- क्या आप मुझे मेरे मित्र की कोई अच्छाई बताने वाले हैं?
नहीं। उस व्यक्ति ने कहा।

इस पर चाणक्य बोले, जो आप कहने वाले हैं, वह न तो सत्य है, न ही अच्छा। चलिए, तीसरा परीक्षण कर ही डालते हैं।

तीसरी कसौटी है उपयोगिता। जो आप कहने वाले हैं, वह क्या मेरे लिए उपयोगी है?
नहीं, ऐसा तो नहीं है।

सुनकर चाणक्य ने आखिरी बात कह दी, आप मुझे जो बताने वाले हैं, वह न सत्य है, न अच्छा और न ही उपयोगी, फिर आप मुझे बताना क्यों चाहते हैं?

गरम खिचड़ी:

एक समय की बात है, चाणक्य घनानंद के दरबार में हुए अपमान को भुला नहीं पा रहे थे। शिखा की खुली गाँठ हर पल एहसास कराती कि घनानंद के राज्य को शीघ्रातिशीघ्र नष्ट करना है। चंद्रगुप्त के रूप में एक ऐसा होनहार शिष्य उन्हें मिला था, जिसे उन्होंने बचपन से ही मनोयोगपूर्वक तैयार किया था।

अगर चाणक्य प्रकांड विद्वान् थे तो चंद्रगुप्त भी असाधारण और अनूठा शिष्य था। चाणक्य बदले की आग से इतना भर चुके थे कि उनका विवेक भी कई बार ठीक से काम नहीं करता था।

चंद्रगुप्त ने लगभग 5,000 सैनिकों की छोटी सी सेना बना ली थी। सेना लेकर उन्होंने एक दिन भोर के समय ही मगध की राजधानी पाटलिपुत्र पर आक्रमण कर दिया।

चाणक्य नंद की सेना और किलेबंदी का ठीक आकलन नहीं कर पाए और दोपहर से पहले ही घनानंद की सेना ने चंद्रगुप्त व उसके सहयोगियों को बुरी तरह मारा और खदेड़ दिया। चंद्रगुप्त बड़ी मुश्किल से जान बचाने में सफल हुए।

चाणक्य भी एक घर में जाकर छुप गए। वे रसोई के साथ ही कुछ मन अनाज रखने के लिए बने मिट्टी के निर्माण के पीछे छुपकर खड़े थे। पास ही चौके में एक दादी अपने पोते को खाना खिला रही थी। दादी ने उस रोज खिचड़ी बनाई थी। खिचड़ी गरम थी। दादी ने खिचड़ी के बीच में छेद करके घी डाल दिया था और घड़े से पानी भरने चली गई थी। थोड़ी ही देर के बाद बच्चा जोर से चिल्ला रहा था और कह रहा था, जल गया, जल गया। दादी ने आकर देखा तो पाया कि बच्चे ने गरमागरम खिचड़ी के बीच में अपनी उँगलियाँ डाल दी थीं।

दादी बोली, तू चाणक्य की तरह मूर्ख है। अरे, गरम खिचड़ी का स्वाद लेना हो तो उसे पहले कोनों से खाया जाता है और तूने मूर्ख की तरह बीच में ही हाथ डाल दिया और अब रो रहा है।

चाणक्य बाहर निकल आए और बुढ़िया के पाँव छुए तथा बोले, आप सही कहती हैं कि मैं मूर्ख ही था, तभी राज्य की राजधानी पर आक्रमण कर दिया और आज हम सबको जान के लाले पड़े हुए हैं।

चाणक्य ने उसके बाद मगध को चारों तरफ से धीरे-धीरे कमजोर करना शुरू किया और एक दिन चंद्रगुप्त मौर्य को मगध का शासक बनाने में सफल हुए।

चाणक्य के बारे में रोचक तथ्य

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