Manusmriti in hindi | मनुस्मृति क्या है: मनुस्मृति सनातन धर्म का एक महनीय ग्रन्थ जिसे प्राचीन भारत का संविधान कहा जा सकता है। इसकी रचना आदि मानव महाराज मनु ने की तथा ब्रह्मा जी की आज्ञा से सप्तर्षियों को इसका प्रथम उपदेश किया। सप्तर्षियों में से महात्मा भृगु ने इसे धारण कर कालान्तर में इसका प्रचार–प्रसार किया।
मनुस्मृति – Manusmriti in hindi
हजारों वर्षों तक यह ग्रन्थ अपने गौरव का विस्तार करता रहा । किन्तु बौद्धकाल में इस महाग्रन्थ को संस्कृतभाषा के जानकार बौद्धों ने दूषित करने का प्रयत्न किया। हालांकि मनुस्मृति की महत्ता व इसके बहुल प्रयोग के कारण वे इसमें आंशिक सफलता ही प्राप्त कर सके, वे इसके प्रायः उन्हीं अंशों को दूषित कर सके जिनका दैनिक जीवन में प्रयोग न के बराबर होता था इस कारण जिन अंशों को प्रायः गुरुकुलों में पढाया नहीं जाता रहा होगा।
किन्तु आज उन दूषित अंशों को मूल संहिता से पृथक् कर सकना सम्भव नहीं है। अतः मनुस्मृति में कहीं–कहीं विरोधाभास भी दिखता है। आर्यसमाज के द्वारा मनुस्मृति के परिष्कार का एक स्तुत्य प्रयत्न हुआ है किन्तु वह सर्वमान्य नहीं हो सका।
इधर आजादी के बाद की सरकारों ने मनुस्मृति आदि ग्रन्थों को सनातन की व्यक्तिगत संपदा मानते हुए इसके अध्ययन–अध्यापन आदि पर कोई विशेष ध्यान नहीं दिया। यहाँ तक कि इस महत्तम ग्रन्थ के विषय में अपवाद ही फैलाये गये। उत्तर प्रदेश में बहुजन की उत्पत्ति के बाद तो यह ग्रन्थ नितान्त तिरस्कृत हुआ।
अपढ़ों व दुराग्रहियों ने इसे अपने आक्रमण के केन्द्र में रखा, साथ ही जनश्रुतियों मात्र का आश्रय लेकर इसकी पदे–पदे आलोचना की। कुछ बुद्धिहीनों, विचारहीनों ने इसकी प्रतियाँ भी जलाईं । कुछ वर्षों तक बहुजन की पूरी राजनीति इसी ग्रन्थ को गाली देकर निम्नवर्गों को उच्चवर्गों से पृथक् करने तक सीमित रही । इसमें वे पर्याप्त सफल भी रहे।
धीरे–धीरे समाज के निम्न वर्गों खासकर हरिजनों में वे यह धारणा डालने में सफल हुए कि ब्राह्मणों व उनके पूर्वजों ने मनुस्मृति का निर्माण किया तथा ऐसे नियम बनाये जिनमें शूद्रों के साथ दुर्व्यवहार किया गया। उन्हें ये लगने लगा कि द्विजों नें उनपर हजारों वर्षों तक अत्याचार किया और उनके सहारे ही जीवन के सुख भोगे जबकि उन्हें निम्नस्तरीय जीवन जीने पर विवश किया।
हैरानी की बात यह है कि वर्गविशेष ने मनुस्मृति को जलाना‚ फाड़ना‚ गाली देना व इसके विरुद्ध कुप्रचार जारी रखा जबकि सत्य से परिचित कराने के लिये समाज का विद्वद्वर्ग आगे नहीं आया। इसका परिणाम यह हुआ कि बहुजनों ने मनुस्मृति को उनके साथ भेदभाव करने वाला ग्रन्थ सिद्ध करने में सफलता प्राप्त कर ली।
तब से लेकर अब तक मनुस्मृति जैसी पवित्र संहिता समाज के तिरस्कार को ही झेल रही है। हालांकि कुछ विश्वविद्यालयों व परीक्षाओं में इसके कुछ अंशों को सम्मिलित किया गया है किन्तु वह भी मात्र संस्कृत विषय के एक अंश के रूप में ही। अतः आज आवश्यकता है इस ग्रन्थ के विषय में लोगों को जागरूक करने व इसकी सच्चाई को जन–जन तक पहुँचाने की। यह कार्य हम सनातनियों को ही करना है ताकि हमारे समाज के एक अंग में इसे लेकर जो मानसिकता फैल गई है उसका हम निराकरण कर सकें।
इसी क्रम में मैंने आज से विभिन्न सक्रिय माध्यमों (फेसबुक‚ टि्वटर‚ कू‚ एलीमेण्ट आदि) पर मनुस्मृति के कुछ श्लोकों का भावार्थ सहित नियमित प्रकाशन करने का संकल्प लिया है। यह कार्य श्रमसाध्य और समयसाध्य भी है अतः इसका प्रकाशन प्रतिदिन सम्भव नहीं हो सकेगा‚ फिर भी सप्ताह में इसपर कम से कम दो लेख अवश्य प्रकाशित करने का प्रयत्न करूँगा। साथ ही पाठकों की सम्बन्धित समस्याओं का निराकरण करने का भी प्रयास करूँगा।
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