पिता पर कविता कुमार विश्वास lyrics: दोस्तों कुमार विश्वास की कविताएं लाजवाब है वैसे तो इन्होने कई कविताऐं लिखी है। जिनमें से कुछ बहुत फेमस है। इन्होने पिता पर भी एक कविता लिखी है। जो अक्सर हम पिता की याद में पढ़ते है या फादर्स डे पर स्कूल में पढ़कर सुनाते है।
हमारी जिंदगी में रिश्तों की क्या अहमियत होती है ये जानने के लिए रिश्तों की कीमत पढ़े
पिता पर कविता कुमार विश्वास lyrics
फिर पुराने नीम के नीचे खड़ा हूँ मैं।
फिर पिता की याद आयी है मुझे।
नीम-सी यादें हृदय में चुप समेटे हुए
चारपाई डाल, आँगन बीच लेटे हुए
सोचते हैं हित, सदा उनके घरों का
दूर हैं जो एक बेटी, चार बेटे
फिर कोई रख हाथ काँधे पर
कहीं यह पूछता है
“क्यूँ अकेला हूँ भरी इस भीड़ में”
मैं रो पड़ा हूं
फिर पिता की याद आयी है मुझे
फिर पुराने नीम के नीचे खड़ा हूँ।
पिता की याद में कुमार विश्वास जी ने बहुत प्यारी कविता लिखी है ये
इस कविता के माध्यम से इन्होने एक पिता के बारे में बताया है की
कैसे एक पिता अपने बच्चो को याद करते है,
अपने दिल में कुछ उनकी यादे लेकर।
एक पिता हमेशा अपने बच्चो के हित में ही सोचता है।
क्या आप जानते है की पैसे बचा कर अमीर कैसे बना जाए? तो अभी फैक्ट्स नॉलेज पेज चेक करे और आईडिया को अपनाये।
पिता पर कविता कुमार विश्वास lyrics
कुमार विश्वास की कुछ अच्छी अच्छी दूसरी कविताएं
उन सपनो को जो अपनो ने तोड़ दए…
पूरा जीवन बिता दिया,
बस सिर्फ तुमको गा भर लेने में,
हर पल कुछ कुछ रीत गया है,
पल जीने में,
पल मरने में,
इसमें कितना दुसरो का है,
अब इस गुत्थी को क्या खोले,
गीत, भूमिका सब तुम हो अब इसके आगे क्या बोले…
सब का कुछ न कुछ उधार है इसलिए सबका आभार है।
पल की बात थी…
मैं जिसे मुद्यत में कहता था वो पल की बात थी,
आपको भी याद होगा आजकल की बात थी।
रोज मेला जोड़ते थे वे समस्या के लिए,
और उनकी जेब में ही बंद हल की बात थी।
उस सभा में सभ्यता के नाम पर जो मौन था,
बस उसी के कथ्य में मौजूद तल की बात थी।
नीतियाँ जूठी पड़ी घबरा गए सब शास्त्र भी,
झोंपड़ी के सामने जब भी महल की बात थी।
उनकी खौरो-खबर…
उनको खरो-ख़बर नही मिलती,
हमको ही ख़ासकर नही मिलती।
शायरी को नज़र नही मिलती,
मुझको तू ही अगर नही मिलती।
रूह में, दिल में, जिस्म में दुनिया,
ढूंढ़ता हु मगर नही मिलती।
लोग कहते है रूह बिकती है,
मैं जिधर हु उधर नही मिलती।
दिल तो करता है…
दिल तो करता है खैर करता है,
आपका ज़िक्र गैर करता है।
क्यों ना मै दिल से दू दुआँ उसको,
जबकी वो मझसे बैर करता है।
आप तो हूबहू वही है जो,
मेरे सपनो मैं सैर करता है।
इश्क क्यों आपसे ये दिल मेरा,
मुझसे पूछे बग़ैर करता है।
एक ज़र्रा दुआएं माँ की ले,
आसमानों की सौर करता है।
मैं तो झोंका हूँ…
मैं तो झोंका हूँ हवाओं का उड़ा ले जाऊंगा
जागती रहना, तुझे तुझसे चुरा ले जाऊंगा।
हो के कदमो पर न्यौछावर फूल ने बुत से कहा
ख़फ़ा में मिल कर भी मैं खुश्बू बचा ले जाऊंगा।
कौन सी शै मुझको पहुंचाएगी तेरे शहर तक
ये पता तो तब चलेगा जब पता ले जाऊंगा।
कोशिशें मुझको मिटाने की भले हो क़ामयाब
मिटते – मिटते भी मैं मिटने का मज़ा ले जाऊंगा।
शोहरतें जिनकी वजह से दोस्त दुश्मन हो गए
सब यही रह जाएगी, मैं साथ क्या ले जाऊंगा।
कोई दीवाना कहता है कुमार विश्वास कविता
पूरा जीवन बीत गया है,बस तुमको गा,भर लेने में,
हर पल कुछ कुछ रीत गया है, पल जीने में, पल मरने में,
इसमें कितना औरों का है,
अब इस गुत्थी को क्या खोलें,
गीत, भूमिका सब कुछ तुम हो,
अब इससे आगे क्या बोलें…
यों गाया है हमने तुमको।
बाँसुरी चली आओ
बाँसुरी चली आओ,होंठ का निमंत्रण है,
तुम अगर नहीं आई गीत गा न पाऊँगा।
साँस साथ छोडेगी, सुर सजा न पाऊँगा,
तान भावना की है शब्द-शब्द दर्पण है।
बाँसुरी चली आओ, होंठ का निमंत्रण है,
तुम बिना हथेली की हर लकीर प्यासी है।
तीर पार कान्हा से दूर राधिका-सी है,
रात की उदासी को याद संग खेला है।
कुछ गलत ना कर बैठें मन बहुत अकेला है,
औषधि चली आओ चोट का निमंत्रण है।
बाँसुरी चली आओ, होंठ का निमंत्रण है,
तुम अलग हुई मुझसे साँस की ख़ताओं से
भूख की दलीलों से वक्त की सज़ाओं से
दूरियों को मालूम है दर्द कैसे सहना है।
आँख लाख चाहे पर होंठ से न कहना है
कंचना कसौटी को खोट का निमंत्रण है
बाँसुरी चली आओ, होंठ का निमंत्रण है।
वही मेरे पिता है – पिता पर कविता
जो स्नेह का प्रतीक है,
संग मेरे हर मोड़ पर खड़े है, वो रहते है हमेशा पास,
वो देते है मुझे सपनों की ऊँचाई,
हर कठिनाई में, मेरा साथ निभाते है,
वही मेरे पिता है, वही मेरे पिता है।
जो मुझे सिखाते है जीवन की सच्चाइयाँ,
जो मुझे बताते है उम्मीदों के साथ आगे बढ़ने की राह,
जिसके आँचल में छिपी है सुरक्षा की छाया,
जिसका होना ही हर दर्द की दवा है,
वही मेरे पिता है, वही मेरे पिता है।
जिनकी सादगी में बसी है उनकी महानता,
हर संघर्ष में दिखती है जिनकी मेहनत की चमक,
मेरे लिए वो है, एक प्रेरणा का स्रोत,
मेरे ऊपर उनका आशीर्वाद है और वो है मेरे जीवन की गति,
वही मेरे पिता है, वही मेरे पिता है।
हर क्षण उनके साथ, बिताना चाहता हूँ,
उनकी मुस्कान में, अपनी खुशियाँ पाना चाहता हूँ,
पिता, आप हो मेरी ताकत और सम्मान,
आपके बिना अधूरा है मेरा हर अरमान,
वो है तो मैं हु,
वही मेरे पिता है, वही मेरे पिता है।
कुमार विश्वास की “है नमन उनको” कविता
है नमन उनको कि जो यशकाय को अमरत्व देकर इस जगत में शौर्य की जीवित कहानी हो गये हैं।
है नमन उनको कि जिनके सामने बौना हिमालय जो धरा पर गिर पड़े, पर आसमानी हो गये हैं।
पिता, जिनके रक्त ने उज्ज्वल किया कुल-वंश-माथा माँ, वही जो दूध से इस देश की रज तोल आई,
बहन, जिसने सावनों में भर लिया पतझर स्वयं ही हाथ ना उलझें कलाई से जो राखी खोल लाई,
बेटियां जो लोरियों में भी प्रभाती सुन रहीं थीं ‘पिता तुम पर गर्व है’ चुपचाप जाकर बोल आईं,
प्रिया, जिसकी चूड़ियों में सितारे से टूटते हैं, माँग का सिंदूर देकर जो सितारे मोल लाई।
है नमन उस देहरी को जहाँ तुम खेले कन्हैया घर तुम्हारे, परम तप की राजधानी हो गये हैं,
है नमन उनको कि जिनके सामने बौना हिमालय जो धरा पर गिर पड़े, पर आसमानी हो गये हैं।
हमने भेजे हैं सिकन्दर सिर झुकाये, मात खाये हमसे भिड़ते हैं वे, जिनका मन, धरा से भर गया है,
नर्क में तुम पूछना अपने बुजुर्गों से कभी भी उनके माथे पर हमारी ठोकरों का ही बयाँ है,
सिंह के दाँतों से गिनती सीखने वालों के आगे शीश देने की कला में क्या अजब है क्या नया है,
जूझना यमराज से आदत पुरानी है हमारी उत्तरों की खोज में फिर एक नचिके ता गया है।
है नमन उनको कि जिनकी अग्नि से हारा प्रभजन काल-कौतुक जिनके आगे पानी-पानी हो गये हैं।
है नमन उनको कि जिनके सामने बौना हिमालय जो धरा पर गिर पड़े, पर आसमानी हो गये हैं।
लिख चुकी है विधि तुम्हारी वीरता के पुण्य-लेखे विजय के उद्घोष! गीता के कथन! तुमको नमन है।
Conclusion: पिता पर कविता कुमार विश्वास lyrics पोस्ट अपने फैमिली और दोस्तों के साथ शेयर करे. पिता पर कविता हमें ये सिखाती है की जीवन में पिता का होना कितना जरुरी है। पिता एक पेड़ की तरह है जो हमेशा छाँव देता रहता है बिना किसी स्वार्थ के, इसलिए अपने पिताजी का सम्मान करे उन्हें कभी भी किसी भी कारण दुःख ना पहुँचाये।
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