नपुसंकता के लक्षण व उपचार

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नपुसंकता के लक्षण व उपचार: नपुसंकता जिसे इरेक्टाइल डिसफंक्शन भी कहा जाता है, को इरेक्शन प्राप्त करने एवं बनाए रखने में कठिनाई से परिभाषित किया जाता है।

इसके बारे में बात करना एक शर्मनाक बात हो सकती है। ये बताया गया है कि 40 से 70 वर्ष के बीच के आधे से ज्यादा नर नपुसंकता के कोई न कोई रूप का अनुभव करते हैं। इस कारण से ये जानकर सुकून पाएं कि आप अकेले नहीं हैं।

नपुसंकता के लक्षण व उपचार

नपुसंकता एक मनोदैहिक रोग है। यथार्थ में नंपुतकता के अंतर्गत दो विभिन्न रोगों का ग्रहण किया जाता है। पहला-वीर्य में शुक्राणुओं की कमी और पूर्णत: अभाव, जिसके चलते नर सन्तान उत्पन्न करने में असमर्थ होता है, भले ही वह यौन क्रिया में अपनी सहचरी को पूर्ण रूप से संतुष्ट करने में सक्षम हो।

दूसरा-किसी शारीरिक और मानसिक कारण के चलते जब नर यौन क्रिया में अपनी सहचरी को संतुष्ट नहीं कर पाए। इस स्थिति में नर यौनांग में और तो उत्तेजना आती ही नहीं है एवं आती भी है, तो शीघ्र ख़त्म हो जाती है।

नर के वीर्य में शुक्राणुओं की संख्या का काफ़ी और अपर्याप्त होना इस स्थिति में गौण है।

अधिकांश मामलों में दोनों स्थितियां साथ-साथ होती हैं एवं एक रोग की चिकित्सा में प्रयुक्त की जाने वाली अधिकांश औषधियां दूसरे रोग की चिकित्सा में भी सहायक होती हैं। संभवत: इसी कारण से शास्त्रों में दोनों रोगों का वर्णन पृथक रूप से नहीं मिलता है।

नपुसंकता के कारण

नपुंसकता का कारण शारीरिक भी हो सकता है एवं मानसिक भी। अफीम, चरस, शराब, हेरोइन, स्मैक इत्यादि नशीले पदार्थों का सेवन, किशोरावस्था में हस्तमैथुन, यौवनकाल में औरत प्रसंगों में अधिकाधिक लिप्त रहना, लंबे वक़्त तक चले रोग के कारण हुई कमजोरी, कब्ज, अपच, अजीर्ण, वायु प्रक्रोप इत्यादि पेट के रोग, मधुमेह, उच्च रक्तचाप, मोटापा इत्यादि रोग और इनकी चिकित्सा हेतु ली जा रही दवाओं के दुष्प्रभाव इत्यादि ऐसे शारीरिक कारण हैं, जिनसे नर में यौनेच्छा की कमी और यौनेच्छा होने के बावजूद नर यौनांग में उत्तेजना न होना इत्यादि लक्षण प्रकट होते हैं

इन्जेक्शन, कैपसूल, गोलियां और पीने वाली एलोपैथिक दवाओं का प्रचलन नशे के रूप में आजकल ज्यादा बढ़ रहा है।

मानसिक कारणों में व्यवसायिक प्रतिस्पर्धा, सांसारिक समस्याओं से उत्पन्न होने वाला तनाव, घर और कार्यस्थल में होने वाले कलह-क्लेश से उपजा विषाद (डिप्रेशन) इत्यादि प्रमुख हैं।

इसके अतिरिक्त औरत आकर्षक न हो, रौबीली हो, रतिक्रिया में सक्रिय रूप से सम्मिलित न हो, तो भी नपुंसकता की स्थिति आ सकती है। इसके अतिरिक्त अवैध संबंधों के बीच में होने वाला भय, चिंता, आशंका भी नपुंसकता का कारण बनता है।

शुक्राणुओं की कमी और अभाव संबंधी नपुंसकता का कारण शारीरिक होता है। किशोरावस्था से ही अप्राकृतिक मैथुन में लिप्त होना, युवावस्था में भी अधिकाधिक मैथुन कर्म में प्रवृत्त होना और पौष्टिक खाना का अभाव इसके प्रमुख कारण हैं।

इसके अतिरिक्त ज्यादा गर्मी वाले स्थान पर लंबे वक़्त तक कार्यरत रहने अथवा एक्स-रे इत्यादि के विकिरण में लंबे वक़्त तक काम करते रहने से भी वीर्य में शुक्राणुओं की कमी हो जाती है। वीर्य में शुक्राणुओं का पूर्णतः अभाव विभिन्न कारणों से जन्मजात भी हो सकता है एवं कनफेड़ इत्यादि रोग होने के कारण बाद में भी हो सकता है।

नपुसंकता के लक्षण

वीर्य में शुकाणुओं की संख्या में कमी होना, स्वस्थ शुक्राणुओं का प्रतिशत कम होना, शुक्राणुओं का आकार असामान्य होना अथवा शुक्राणुओं का पूर्णत: अभाव होना नपुंसकता के लक्षण हैं।

यौनेच्छा में कमी और यौनेच्छा का पूर्णतः अभाव, औरत के स्पर्श, आलिंगन और मधुर व्यवहार के बावजूद लिंग में बिल्कुल भी उत्तेजना न होना और उत्तेजना होने पर शीघ्र ही ख़त्म हो जाना इत्यादि लक्षण दूसरे तरह की नपुंसकता में पाए जाते हैं।

नपुसंकता के उपचार

मनोचिकित्सा के अंतर्गत रोगी में आत्मविश्वास जगा कर उसे आश्वस्त किया जाता है कि उसे कोई तरह का किसी रोग और कमजोरी नहीं है। किशोरावस्था में अप्राकृतिक मैथुन में प्रवृत्त रहे युवकों को प्रथम यौन रिश्ते के वक़्त डर बना रहता है कि कहीं वह यौन क्रिया सुचारु रूप से संपन्न न कर सकें।

आत्मविश्वास की कमी के कारण पहली बार मैथुन क्रिया से विफल रहने पर नर के मस्तिष्क में ये बात घर कर जाती है कि वह मैथुन-कर्म के योग्य नहीं है। अगर रोगी शारीरिक रूप से सक्षम हो, तो सिर्फ मनोचिकित्सा के ज़रिये ही उसका उपचार संभव है। अगर शारीरिक रूप से भी रोगी दुर्बल है, तो निम्नलिखित चिकित्सा रोगी को दे सकते हैं-

सुबह खाली पेट अंजीर के पके हुए फल खाएं।

सुखे अंजीर, किशमिश, छोटी इलायची के दाने, बादाम की गिरी, पिस्ता, चिरौंजी और मिस्री 20-20 ग्राम और केशर 2 ग्राम। सबको बारीक कूट-पीस कर कांच के बरतन में डालें और उसमें गाय का घी डालकर दस दिन तक धूप दिखाएं। 2 चम्मच तक ये दवा दूध के साथ-सुबह शाम लें।

सूखे अंजीर, शतावरी, सफेद मूसली, किशमिश, चिरौंजी, बादाम की गिरी, पिश्ता, चिरौंजी, सालम मिस्री, गुलाब के फूल, शीतल चीनी सब ही 100-100 ग्राम लेकर सबको बारीक पीसकर चीनी की चाशनी में पका लें। जमने योग्य हो जाए तो 10-10 ग्राम लौह भस्म, केशर, अभ्रम भस्म और प्रवाल भस्म डालकर अच्छी तरह मिला दें। 2-2 चम्मच सुबह-शाम दूध के साथ दें।

तुलसी एवं गिलोय का एक-एक चम्मच स्वरस समान भाग शहद के साथ लें।

बंगभस्म को शहद एवं तुलसी के पत्तों के स्वरस में घोटकर मूंग के दानों के बराबर की गोलियां बनाएं और 1-1 गोली सुबह-शाम दूध के साथ लें।

असगंध नागौरी (छोटी असगन्ध) और विदारी कन्द समान भाग लेकर कूटकर रख लें। एक-एक चम्मच सुबह-शाम मिस्री मिले हुए गर्म दूध के साथ लें। अगर इसके सेवन से कब्ज की शिकायत हो, तो असगंध एवं विदारी कन्द के साथ सोंठ भी समान मात्रा में लें। कब्ज होने की दशा में असगंध और आंवला का समान भाग चूर्ण भी ले सकते हैं।

बड़ा गोखरू, गिलोय, सफेद मूसली, विदारी कन्द, मुलेठी और लौंग बराबर मात्रा में लेकर चूर्ण बनाएं और आधा-आधा चम्मच सुबह-शाम दूध के साथ लें।

काले धतूरे के बीज छाया में सुखा लें एवं बारीक पीस कर शहद के साथ घोट लें। उड़द की दाल के बराबर की गोलियां बना लें। एक-एक गोली सुबह-शाम दूध के साथ लें।

सफेद मूसली 200 ग्राम, शीतल चीनी 100 ग्राम, वंशलोचन 50 ग्राम और छोटी इलायची के बीज 50 ग्राम लेकर कूटें। इसमें 20-20 ग्राम अभ्रक भस्म और प्रवाल भस्म मिला कर रख लें। एक-एक ग्राम सुबह-शाम शहद के साथ लें।

उड़द की दाल और कौंच के बीज समान मात्रा में पीसकर चूर्ण बना कर रख लें। 50-100 ग्राम की मात्रा में प्रात: और सायं दूध में खीर की तरह पका कर लें।

शुद्ध शिलाजीत और छोटी पीपल का चूर्ण 10-10 ग्राम लेकर उसमें 1-1 ग्राम बंगभस्म और प्रवालभस्म मिला लें। ये मिश्रण 1 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम लें।

सफेद मूसली, पुनर्नवा, असगन्ध, गोखरू, शतावर और नागबला सब ही को बराबर की मात्रा में लेकर चूर्ण बना लें। एक-एक चम्मच चूर्ण सुबह-शाम मिस्री मिले हुए दूध से लें।

काली मूसली, सफेद मूसली, कौंच के बीज, असगंध, शतावर, तालमखाना, छोटी इलायची के बीज और छोटी पीपल बराबर की मात्रा में लेकर चूर्ण बनाएं। एक-एक चम्मच सुबह-शाम मिस्री मिले हुए दूध से लें।

अंबर को तिल के तेल में मिलाकर समागम से 1 घण्टा पहले इन्द्रिय पर लेप करें। इससे स्तंभन शक्ति बढ़ती है।

कपूर को गुलाब के इत्र में मिला कर समागम से 1 घण्टा पहले इन्द्रिय पर लेप करने से भी स्तंभन शक्ति में वृद्धि होती है।

आयुर्वेदिक औषधियां

रातिवल्लभरम, शुद्ध शिलाजीत, मकरध्वज, मन्मथ रस, शतावरी पाक, मूसली पाक, अश्वगन्धारिष्ट, चन्द्रकला रस, लवंगादि चूर्ण, कामचूड़ामणि रस, धातु पौष्टिक चूर्ण, अभ्रक भस्म, शुक्रवल्लभ रस, हीरा भस्म, स्वर्ण भस्म इत्यादि औषधियां नपुंसकता की चिकित्सा हेतु वर्षों से प्रयोग की जाती रही हैं।

पेटेंट औषधियां

डिवाइन आनन्द प्लस कैप्सूल (बी.एम.सी. फार्मा, शुक्र संजीवनी वटी और शिवाप्रवंग स्पेशल (धूतपापेश्वर), मदन विनोद वटिका (झण्डु), एशरी फोर्ट कैपसूल (एमिल), टैन्टैक्स फोर्ट (हिमालय), केशरादिवटी (बैद्यनाथ), पालरिवीन फोर्ट और नियो गोलियां (चरक) आदि।

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